पटना । बिहार की राजनीति में एक बार फिर से सियासी उठापटक देखने को मिली है। हालांकि, इस बार यह मामला एक पार्टी विशेष का है, यानी लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी का। पार्टी के 5 सांसदों ने अपने मुखिया चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर दी और उनके चाचा पशुपति पारस को अपना नया नेता चुन लिया। माना जा रहा है कि इस बगावत की शुरुआत किसी और ने नहीं बल्कि चाचा पशुपति पारस ने ही की थी। हालांकि, यह पहली बार नहीं जब राजनीति में चाचा-भतीजे के बीच रार देखने को मिली हो। इससे पहले भी भारत की राजनीति में कई मौके आए जब चाचा-भतीजों के बीच सांप-सीढ़ी का खेल खेला गया।
आइए आपको बताते हैं ऐसी ही कहानियां एलजेपी के छह में से पांच लोकसभा सांसदों ने चाचा पशुपति पारस को संसदीय दल का नेता चुन लिया है। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने उन्हें पार्टी के संसदीयल दल के नेता के तौर पर मान्यता भी दे दी है। इसका मतलब है कि अब चिराग पासवान की एलजेपी संसदीय दल के नेता के तौर पर मान्यता खत्म हो गई। दरअसल, राम विलास पासवन के निधन के बाद एलजेपी की कमान चिराग पासवान के हाथ आ गई और वह पार्टी से जुड़े सभी फैसले लेने लगे। यही बात पार्टी के बाकी नेताओं को पसंद नहीं आ रही थी। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग लड़ने का फैसला भी चिराग का ही माना जाता है, जहां एलजेपी को बड़ी हार देखनी पड़ी थी। चाचा-भतीजे के बीच सियासी गणित बिगाड़ने के खेल का सबसे ताजा उदाहरण महाराष्ट्र में ही देखने को मिला था।
साल 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद रातोंरात भतीजे अजित पवार ने बीजेपी के साथ मिलकर शपथ ले ली थी और चाचा शरद पवार को इसकी भनक तक नहीं लगी। सुबह-सुबह पौने छह बजे राष्ट्रपति ने राज्य से शासन हटाया और आठ बजे देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ली और अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की। इसके बाद शरद पवार ने कहा कि अजित पवार का बीजेपी के साथ जाना उनका फैसला है। हालांकि, बहुमत न होने के कारण देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया और फिर एनसीपी ने कांग्रेस-शिवसेना के साथ मिलकर सरकार महा विकास अघाड़ी सरकार बनाई। अजित पवार भी लौटकर आए और अब वह राज्य के डिप्टी सीएम हैं।