बिलासपुर । कहते हैं कि जो रात को जल्दी सोए और सुबह को जल्दी जागे, उस बच्चे से दुनिया का दुख दूर-दूर को भागे। अर्थात् रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी जाग जाना, यह प्रकृति का नियम है और जो भी व्यक्ति इस नियम का पालन करता है वह हमेंशा खुश रहता है। सुबह उठकर हमें अपना समय आसन, प्राणायाम में देना चाहिए क्योंकि यह शरीर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है और मन के स्वास्थ्य के लिए रोज मेडिटेशन व पॉजिटिव थिंकिंग चाहिए।
उक्त बातें स्कूली बच्चों के लिए आयोजित ऑनलाइन समर एक्टिविटीज़ में संबोधित करते हुए टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने कही। आपने बच्चों से कहा कि जो उगते हुए सूर्य के समय भी सोए रहते हैं उनके जीवन का सूर्य कैसे उग सकता है इसका मतलब है कि हमें जल्दी उठ जाना चाहिए और अपने आध्यात्मिक गुणवत्ता को विकसित करना चाहिए क्योंकि बौद्धिक शक्ति के आधार पर हम धन, नाम, मान, शान आदि तो कमा सकते हैं लेकिन एक अच्छा इंसान बनने के लिए हमारे जीवन में बुद्धि की शक्ति के साथ नैतिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक शक्ति की सख्त जरूरत होती है जिससे प्रेम का गुण हमारे अंदर आता है और हम सशक्त व स्थिरबुद्धि बन जाते हैं।
सफलता के लिए चार ‘स’ याद रखें
जीवन में सफलता पाने के लिए हमें चार बातें याद रखनी है- सुनना, समझना, समाना और सुनाना। शिक्षकों द्वारा पढ़ायी जाने वाली पढ़ाई हो या अपने बड़ों के द्वारा दी गई जीवन की सीख हो, जब तक हम ध्यान से नहीं सुनेंगे तब तक अपना नहीं सकेंगे…कहते हैं कि यदि एक अच्छा वक्ता बनना हो तो पहले एक अच्छा श्रोता बनना होगा लेकिन केवल वक्ता बनना ही जरूरी नहीं है हमारे जीवन में यदि अच्छी बातें नहीं होंगी तो लोग कहेंगे ये केवल सुनाने वाले हैं। दूसरी बात है समझना, जो भी बातें हम सुनते हैं उसे सोचेंं कि क्या मैंने ठीक से समझा? और तीसरा है समाना। जो सुना, समझा वह अपने जीवन में समाना अर्थात् अमल करना। और अमल करने के बाद उसे दूसरों को सुनाना। गांधी जी का उदाहरण देते हुए आपने बताया कि एक मां के द्वारा अपने बच्चे को ज्यादा मीठा न खाने के लिए गांधीजी को कहा गया। तो गांधीजी ने एक महीने बाद उस बच्चे को बुलाकर ज्यादा मीठा खाने के नुकसान बताए और कहा कि ज्यादा मीठा न खाया करो। क्योंकि इससे पहले गांधीजी को खुद बहुत मीठा पसंद था। उन्होंने पहले एक महीने में अपने संस्कार सुधारे फिर बच्चे को कहा।
दीदी ने बच्चों को सकारात्मक सोच से निर्भयता का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि स्वयं को स्वच्छ करते समय संशय व मन में भय के विचार न लाकर मैं स्वस्थ हूं, शक्तिशाली हूं, निरोगी हूं… ऐसे विचार करते हुए हाथ धोएं, स्नान करें व शारीरिक दूरी रखें। डर को दूर कर दें व कोरोना के बजाय करूणा याद रखें। आपने बच्चों को बताया कि आध्यात्मिक, अनुशासनप्रिय व समय के पाबंद होने पर हम सफल व्यक्ति के रूप में याद किये जाते हैं।
कार्यक्रम की शुरूआत प्रेरणादायी गीत- हम परमपिता के बच्चे हैं, धरती पर स्वर्ग बसाएंगे और ये मत कहो खुदा से मेरी मुश्किलें बड़ी है, मुश्किलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है… से हुई जिसे सुनकर सभी उमंग से भर गए। अंत में कुछ बच्चों ने इस सत्र में सुनी हुई बातों से जो सीखा उसे दोहरा कर फीडबैक दिया। दीदी ने कार्यक्रम के शरू व अंत में सभी को मेडिटेशन का अभ्यास कराया। लगभग सौ बच्चों ने इस क्लास का लाभ लिया। गुगल मीट व यूट्यूब के माध्यम से यह कार्यक्रम प्रसारित किया गया।