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ढह गया रायगढ़ के राजनीति का एक और मजबूत स्तंभ, रोशन लाल अग्रवाल का निधन रायगढ़ के लिए एक बड़ा वज्रपात, पुलिस की लाठी, जेल, प्रताड़ना और आंदोलन व संघर्षों से घिरा रहा पूरा जीवन उनके निधन से पूरे शहर में शोक की लहर

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अनिल रतेरिया की कलम से
रायगढ़ । रायगढ़ के लिए आज का दिन बहुत ही दुःखद खबर ले कर आया है। आज रायगढ़ के पूर्व विधायक व  भाजपा जुझारू नेता रोशन लाल अग्रवाल का दोपहर 2 बजे दिल्ली के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया है। उनके निधन की खबर मिलते ही पूरे शहर में शोक का वातावरण निर्मित हो गया है। 26 जनवरी की शाम वे पूर्व कलेक्टर व भाजपा नेता ओपी चौधरी के घर उनसे मिलने गये थे जहां उन्हें ब्रेन हैमरेज हो गया था जिसके कारण वे सीढ़ियों से गिर गए थे। जिसके बाद उन्हें तत्काल उपचार के लिए फोर्टिस-ओपी जिंदल हॉस्पिटल लाया गया। जहां उनका उपचार चल रहा था और दूसरे एंबुलेंस से दिल्ली मेदांता अस्पताल लेजाया गया था। और आज उनकी मौत की खबर ने सभी को झकझोर कर रख दिया। वरिष्ठ पत्रकार अनिल रतेरिया ने उनके पूरे जीवन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रोशन लाल अग्रवाल को मैंने बहुत करीब से जाना है युवा अवस्था से ही उनके मन में अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने की मनोंभावना थी। युवा अवस्था आते आते विद्यार्थी परिषद से लेकर भारतीय जनता पार्टी में प्रचार मंत्री से अपने सफर की उन्होंने शुरूवात की। और जयदयाल, लखीराम, तामस्कर, दिलीप सिंह जूदेव, विजय अग्रवाल, लखन लाल चौबे के साथ मुट्ठी भर लोगों के साथ आज से 4 दशक पहले अन्याय और कांग्रेस के खिलाफ अपनी पूरी ताकत झोंक दी। गरीबी और पारिवारिक दायित्वों का कठीन जीवन का निर्वहन करते हुए वे विपक्ष की राजनीति में अनेकों दंश झेलते हुए भी निरंतर आगे बढ़ते चले गये और कभी भी पीछे पलट कर नहीं देखा और ना ही समझौता किया। अपने बालसखा विजय अग्रवाल के साथ हर हमेशा बड़े पुलिस अत्याचारों का विरोध किया। और उनके रायगढ़ का सबसे बड़ा घटना क्रम गोली कांड था जिसमें अनेकों फर्जी मुकदमें बनाये गये लोगों को जेल ठूंसा गया और इनके खिलाफ भी मुकदमा बने। खरसिया में जो अर्जून सिंह का उप चुनाव हुआ उसमें रोशन लाल अग्रवाल की बहुत बड़ी भूमिका थी। साफ बोली और सीधे सपाट बोलने के कारण उन्हे कई बार लोगों से नाराजगी का भी सामना करना पड़ा लेकिन वे तो पर भी अपनी साफ बोली और सीधे सपाट बोलना नहीं छोड़े। अपना  पहला विधानसभा चुनाव उन्होंने 1998 में तत्कालीन मंत्री कृष्णकुमार गुप्ता के खिलाफ लड़ा था। उसमें बहुत ही कम मतों से चुनाव हारे थे उसके बाद उन्हे काफी खराब लगा की कुछ अपने ही लोगों ने दगा दिया। इसके बाद उन्होंने बीच में टिकट नहीं मांगी और 2013 में उन्होंने  अपना मनोबल जुटाकर चुनाव मैदान में उतरे। चूंकि भाजपा की सरकार थी मोदी वातावरण भी अच्छा था और इस चुनाव में उन्होंने तत्कालीन विधायक डॉ. शक्राजीत नायाक को हराया। 2018 में हुए चुनाव में उन्हें प्रकाश नायक के सामने हार का सामना करना पड़ा चूंकी उनके पूराने साथी विजय अग्रवाल को भी भारी भरक मत मिलना ही उनके हार का मुख्य कारण बनी। बीमारी, कठिनाई और संघर्षों ने उनका कभी भी पीछे नहीं छोड़ा एक बार उन्हों स्वाईन फ्लू हुआ तो पर भी उन्हे एयर एंबुलेंस से उन्हे रायपुर से दिल्ली ले जाया गया। और कुछ माह पूर्व उनको कोरोना भी हुआ तो वे जिंदल अस्पताल में भर्ती थे जहां से वे पुनः स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर लौटे थे। सुगर से वे लंबे समय से पीड़ित थे लेकिन सुबह योगा, वाकिंग औऱ पूरी तरह अनुशासित जीवन इनके संघर्षों की मुल गाथा है। लखी राम और नंद कुमार साय का विश्वास हासिल कर वे इस मुकाम में पहुंचे थे.  अभी उनके सबसे निकट जो हमेशा बड़े भाई के रूम में काम आते है गिरधर गुप्ता को वे हमेशा अपना मार्ग दर्शक मानते रहे हैं। राजनीति के साथ साथ अपने जनकर्म अखबार को भी वे 25 सालों से जीवित रखे हैं। तत्कालीन कलेक्टर अमित कटारिया से भी उनकी एक गरीब की आशियाने ढहाने को लेकर उनकी तू-तू, मैं-मैं हुई थी और उन्हे अपमानित कर बाहर निकाला गया। ना उन्होने क्षमा मांगी बल्की वे लड़ाई लड़ी। उसी का परिणाम था कि वे प्रचंड बहुमत से चुनाव में विजयी हुए। वे सरस्वती शिशु मंदिर के भी अध्यक्ष रहे, विधि महाविद्यालय के मैनजमेंट कमेटी में थे, अग्रवाल समाज की अनेकों संस्थाओं में संरक्षक पद पर भी हैं। वे छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के दो बार डायरेक्टर रह चुके हैं। उनपर कभी भी कोई भी बड़ा भ्रष्ट्राचार या गंभीर आरोप आर्थिक दृष्टिकोण से उनपर नही लगा है। और उनके पुत्र गौतम अग्रवाल ने कभी भी फ्रंट में आकर अपने पिता का फायदा नहीं उठा, पर्दे के पीछे से रह कर अपने पिताजी का पूरा साथ दिया। उनकी अर्धांगिनी भी हमेशा उनके साथ रहीं। रायगढ़ में उनके सैकड़ों इष्टमित्र और उनके एक विशाल भरोसेमंद टीम है जिसकी पूर्ण शक्ति के सहारे वे आज तक हर लड़ाई को लड़ते आ रहे हैं। आज उस टीम की हर एक सदस्य को उनके निधन की खबर सुनते ही गहरा आघात पहुंचा। और आज उनको रोते बिलखते देखा गया। रायगढ़ में एक लंबे समय के बाद एक युवा तुर्क जो निचले तबके से लेकर ऊपर तक हर वर्ग हर समाज से जुड़ा हुआ व्यक्तित्व का इस प्रकार से चले जाना रायगढ़ के लिए और युवा वर्ग के लिए बहुत बड़ी क्षति है। क्योकिं युवा गर्वों के लिए हमेशा उन्होंने संघर्ष और लड़ाई लड़ी और उनका मनोबल बढ़ाया। कभी भी नौकरशाह राजनीतिकि, सत्ता के आगे झुके नहीं। 1975 में आपात काल के समय गिरधर गुप्ता औऱ रोशन लाल अग्रवाल दीवालों में पर्चे भी चिपकाते थे। उनके निधन से उनकी भरपाई असंभव है और खासकर भाजपा और अग्रवाल समाज को भी उनके निधन की खबर से बहुत बड़ा झटका लगा है। वे सिर्फ न केवल जन नायक थे बल्कि जबरदस्त संगठन कर्ता भी थे, रोशन लाल का जन्म रायगढ़ जिले में बुद्धराम अग्रवाल के घर एक मध्यम-वर्गीय परिवार में 20 जून 1954 को हुआ था। आपात काल में पूरी सक्रियता से रोशनलाल के संयोजन व दिशानिर्देश पर में वन्देमातरम शताब्दी समारोह विभिन्न स्थलों पर आयोजित हुए। उसी दौरान छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में उन्होने स्थानीय बूजी भवन में जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अभिनंदन किया। वे भारतीय जनता पार्टी को सुदृढ़ तथा मजबूत बनाने हेतु संगठन के कार्यों में लगे रहे 1971 में रविशंकर विश्वविद्यालय से  एम. कॉम. की डिग्री प्राप्त की।

प्रारम्भिक सक्रियता और राजनीति


रायगढ़ नगर के मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे रोशन लाल सन् 1977 के लोक सभा चुनाव में युवा भाजपा के जिला संयोजक के रूप में जनता पार्टी रहे, 1977 के विधान सभा चुनाव में रोशन लाल को प्रत्याशी चयन समिति का सदस्य बनाया गया। वे विगत् कई वर्षो से स्वामी बालकृष्ण पुरी विधि महाविद्यालय की प्रशासनिक समिति के सदस्य होने के अलावा सामाजिक कार्यों में संलग्न अग्रवाल मित्रसभा रायगढ़ के संरक्षक भी है। सन् 2000 में रायगढ़ जिले के पुनः भाजपा अध्यक्ष बने। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा और रोशन लाल ने रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र से 20,000 से अधिक वोटों से जीत प्राप्त की। छत्तीसगढ़ के विधानसभा में उन्होंने 8 दिसम्बर 2013 को विधायक के रूप में शपथ ली थी। 

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