जोहार छत्तीसगढ़-पत्थलगांव।
आदिवासी जनजाति समुदाय के बच्चों को शिक्षा से जोडऩे में सरकार के विशेष प्रयास रहते हैं। लेकिन जशपुर जिले के पत्थलगांव विकासखंड पालीडीह के लाखझार में 33 आदिवासी बच्चों के भविष्य पिछले एक साल से स्कूल विहीन जर्जर पाठशाला के चलते अंधकार में है। जिसको ठीक कराने के जहमत आज तक शासन ने नहीं उठाई। बल्की उल्टा शिक्षा विभाग जानकारी देने में लीपापोती कर अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालने के लिए आज तक अधिकारियों को असलियत दिखाने से कतराती रही है। वहीं भवन निर्माण कार्य के लिए स्थानीय नेता के तरफ से कोई ठोस कदम आज तक नहीं उठाए गए हैं। जिसके कारण आज आदिवासी जनजाति बच्चे कभी किसी निजी भवन तो कभी पेड़ के नीचे पढऩे पर मजबूर है।
उक्त मामले में जानकारी अनुसार मामला जशपुर जिले के पत्थलगांव विधानसभा क्षेत्र का है जिसमे गांवो के विकास को लेकर चर्चे जोरों पर है। लेकिन इन विकास कार्यों के सूचि में अभी तक स्कूल विहिन जर्जर पाठ शाला लाखझार का जिक्र तक नहीं आना आदिवासी जनजाति समुदाय के बच्चों में शिक्षा पर खासा नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। विगत दो सालों से ग्रामीण जर्जर स्कूल भवन को सुधार करवाने के गुहार पंचायत तथा संबंधित आधिकारी से किए लेकिन सुधार नहीं होने से भवन अत्यन्त जर्जर होने के कारण स्कूल निजी भवन में संचालित किया जा रहा था। जिसमें पहले बार के तरह इस बार भी मकान मालिक कुछ दिनों के लिए ही स्कूल संचालित करने के अनुमति दिए हैं। लोगों का कहना है अगर समय पर स्कूल भवन सुधार या निर्माण नहीं हो सका तो आदिवासी बच्चे फि र से पेड़ के नीचे पढऩे पर मजबूर नजर आयेंगे। जिसमें पंचायत का कहना है कि उक्त मामले के जानकारी विधायक रामपुकार सिंह को दिए हैं जिसमें उन्होंने राशि आवंटित होने की प्रक्रिया शुरू होने के बात कही थी। लेकिन वर्तमान में कई महीनों के बाद भी समुचित व्यवस्था ना होने से स्कूल संचालन में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जिससे बच्चों के पढ़ाई ठप्प होने की कगार में है। कई महीनों के बाद भी अभी तक स्कूल जैसे महत्वपूर्ण कार्य का शुरू नहीं हो पाना और ना ही जर्जर स्कूल भवन के सुधार होना सरकार के आदिवासी बच्चों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के दावे असफल होते नजर आ रहे है। साफ तौर पर मायूस तस्वीर आदिवासी बच्चों के तकदीर बयां करती नजर आ रही है जिसमें लगभग सभी बच्चे अत्यंत गरीब परिवार से नीचे जीवन यापन करने वाले परीवार से है। जिनके पढ़ाई के मात्र एक साधन सरकारी स्कूल है। जिसे किसी शब्दों में बयां करने की शायद जरूरत नहीं की इन्हें आर्थिक रूप से सशक्त मजबूत बनाने के मूल मंत्र शिक्षा के पायदान है। जिसपे चलकर गरीबी भूखमरी से लड़ा जा सकता जिसे किसी भी कीमत में इस बात को झूठलाया भी नहीं जा सकता। लेकिन विडंबना देखिए आज उसी शिक्षा के मंदिर से बच्चों को तार-तार कर दूर रखकर शासन सिर्फ कागजों में ही पिछले दो सालों से बेहतर शिक्षा दिलाने की आदिवासी बच्चों खोखले दावे करते नजर आ रही है। आज के आधुनिक युग में जहां पढ़ाई मॉर्डन टेक्नोलॉजी से लैस सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है वहीं इस ग्राम के आदिवासी बच्चे तथा ग्रामीण स्कूल भवन के लिए तरस रहे हैं। जिसकी साफ झलक तस्वीर में दिखाई दे रही है। शासन के उदासीनता है कि अब तक आदिवासी बच्चों को पढऩे के लिए एक सर पर छत दिला पाने में असफ ल रही है। अब देखना होगा की सासन-प्रशासन पर समाचार का असर कितना हो पाता है या आंख मूंदे ही इन आदिवासी बच्चों का भविष्य लिखा जावेगा।