नई दिल्ली। पर्यावरण क्षेत्र के विशेषज्ञों ने उम्मीद जाहिर की है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की बैठक में अहम वैश्विक मुद्दों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने की रणनीति पर भी चर्चा होगी। महासभा की बैठक नवंबर में होने वाली काप-26 की दिशा भी तय करेगी। पूरी दुनिया को जलवायु मोर्चे पर इस बैठक से भी बड़ी उम्मीदें हैं। यूएनजीए की बैठक से जुड़ी संभावनाओं पर विचार करने के लिए आयोजित वेबिनार में यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन की सीईओ लॉरेंस टूबिआना ने कहा कि इसमें अफगानिस्तान के मुद्दे पर बातचीत होगी। लेकिन उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से ध्यान नहीं हटने देने की पूरी कोशिश करेंगे। जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा संकट है। हमें 2030 और 2050 के लक्ष्यों के लिए एक मजबूत वित्तीय पैकेज जारी करना चाहिए। वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना अब भी संभव है और यूएनजीए एक विश्वसनीय मंच है। यह पूरी दुनिया के हित से जुड़ा मसला है इसलिए इस बैठक को ध्यान में रखा जाएगा। जलवायु फेलो बरनीस ली ने कहा कि ऐसा पहली बार होगा जब पहले की अपेक्षा ज्यादा संख्या में देश यूएनजीए के सत्र में हिस्सा लेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के विभिन्न हिस्सों के डायनामिक्स कैसे काम करते हैं। चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका समेत सभी मध्यम आय वाले देश इस सत्र में क्या भूमिका निभाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। जलवायु संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में चीन के रवैये का जिक्र करते हुए बरनीस ने कहा कि चीन एक बड़ा देश है और ऐसा नहीं लगता कि वह जलवायु संबंधी अपने लक्ष्यों मैं किसी तरह का बदलाव करेगा। इसके बावजूद कुछ सकारात्मक पहलू हैं। पिछले हफ्ते चीन के नीति एवं अनुसंधान समूह ‘चाइना काउंसिल फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट’ की बैठक हुई जिसमें यह सिफारिश की गई कि कार्बन उत्सर्जन संबंधी नियमों की अवहेलना करने वालों को दंड दिया जाए। इसके अलावा चीन खुद दूसरे देशों में कोयले से जुड़ी अपनी परियोजनाओं पर सार्वजनिक वित्त पोषण को रोके। चीन ओवरसीज कोल फंडिंग में 13 फीसदी का योगदान करता है।