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भारतीय आहार केवल 70 प्रतिशत पोषक तत्वों की कर पाता पूर्ति

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नई दिल्ली । भारतीय आहार केवल 70 प्रतिशत या उससे भी कम ही पोषक तत्वों की पूर्ति कर पाता है। यह निष्कर्ष मल्टीविटामिन ब्रांड सुप्राडिन द्वारा निकाला गया है। बीते ‎दिनों जारी इस रिसर्च में 10 न्यूट्रिशनिस्ट में से 9 न्यूट्रिशनिस्ट ने इस बात को माना है। अध्ययन में 220 डॉक्टरों और न्यूट्रिशनिस्ट को शामिल किया गया था। इसमें भारतीय आहार के जरिए 100 प्रतिशत पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं हो पाती इस बात को उजागर किया गया है।
इस सर्वे के अंदर लगभग 90 प्रतिशत डॉक्टरों ने इस बात को माना है कि भारतीय आहार से केवल 70 प्रतिशत ही पोषक तत्व प्राप्त हो पाते हैं। चौंका देने वाली बात तो यह है कि इस सर्वे में उन राज्यों को भी शामिल किया गया था जो मांस का सेवन अधिक मात्रा में करते हैं। इसके अलावा रिसर्च से पता चला है कि विटामिन बी 12, और डी 3 ऐसे हैं जिनकी सबसे ज्यादा कमी लोगों में पाई गई है। यही नहीं, आयरन, जिंक, कैल्शियम, फोलिक एसिड, और विटामिन सी भी भारतीय आहार में बेहद कम पाया जाता है। इस सर्वेक्षण में लगभग 73 प्रतिशत डॉक्टरों ने इस बात पर हां भरी है, कि अगर इन पोषक तत्वों की पूर्ति करने के लिए मल्टीविटामिन सप्लीमेंट का सेवन किया जा सकता है। वहीं बायर कंज्यूमर हेल्थ डिवीजन के कंट्री हेड, इंडिया, संदीप वर्मा कहते हैं कि सर्वे में मौजूद डॉक्टरों ने आहार में पोषक तत्वों की कमी को उजागर किया है।इस सर्वे के अंदर एक चौंका देने वाली बात जो सामने आई है वह यह है कि हमारे दैनिक आहार के जरिए हमारे शरीर को सभी पोषक तत्व प्राप्त नहीं हो सकते। इसके अलावा दैनिक आहार में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट्स लेना जरूरी है।
इसी से आप शारीरिक ऊर्जा पा सकते हैं और यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर कर सकते हैं। वहीं यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी का ही हिस्सा डॉक्टर जेनम पी मेहता का कहना है कि, कोविड के दौरान हेल्थ और वेलनेस को सबसे ऊपर रखना बेहद जरूरी है। ऐसे में इस सर्वे में आए परिणामों को वक्त की जरूरत मानकर लोगों को पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के तरीके पर विचार करना चाहिए।एक स्वस्थ शरीर ही जीवन को आनंदमय बना सकता है। यही सोचकर अक्सर ज्यादातर लोग घरेलू भोजन, फल, जूस, चिकन, और सब्जियों का सेवन अधिक मात्रा में भी करते हैं। पर क्या इस सब के बाद भी हमारे शरीर की जरूरत पूरी हो पाती है। इसका जवाब शायद ना है। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि रिसर्च कह रही है।

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