नई दिल्ली । इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर्यावरण ही नहीं आपकी सेहत के लिए भी अच्छी हैं। यह खुलासा हुआ है एक ताजा शोध में। कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में ये तथ्य सामने आए हैं कि सड़कों पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बढ़ने से आपकी सेहत बेहतर होगी। टोरंटो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक मॉडल बना कर अध्ययन किया है। इसमें बताया गया है कि बढ़ती इलेक्ट्रिक गाड़ियों से हवा में प्रदूषक तत्वों की कमी आई है। इससे हर साल वायु प्रदूषण के चलते होने वाली मौतों में कमी आएगी।
इस शोध कार्य का नेतृत्व कर रहीं टोरंटो यूनिवर्सिटी में सिविल एंड मिनरल इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर मैरिएन हेत्ज़ोपोलू के मुताबिक शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण की समस्या का असर वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर होता है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियां की संख्या बढ़ने से हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर की कमी होती है। इससे हवा की गुणवत्ता काफी बेहतर होती है। इससे लोगों के जीवन पर सीधा असर होता है। कनाडा में हर साल लगभग वायु प्रदूषण के चलते लगभग 14,600 लोगों की समय से पहले मौत हो जाती है। इसमें लगभग 3,000 मौतें ग्रेटर टोरंटो हैमिल्टन एरिया में होती हैं। मैरिएन हेत्ज़ोपोलू ने एक मॉडल बनाया जिसके जरिए उन्होंने दिखाया कि पेट्रोल और डीजल की तुलना में बढ़ती इलेक्ट्रिक गाड़ियों से एक तरफ जहां हवा की गुणवत्ता सुधारने से लोगों की सेहत अच्छी हो सकती है वहीं हर साल स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले लाखों डॉलर भी बचाए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस रिसर्च के मिले परिणाम काफी चौकाने वाले थे। उन्होंने कहा कि अगर सिर्फ एक पेट्रोल या डीजल की गाड़ी को इलेक्ट्रिक गाड़ी से रिप्लेस करने पर देश को 10,000 डॉलर के स्वास्थ्य और सामाजिक फायदे होंगे। इस का फायदा सिर्फ कार खरीदने वाले को नहीं बल्कि उस शहर में रहने वाले हर व्यक्ति को होगा। अब भारत में प्रदूषण और इलेक्ट्रिक गाड़ियों की जरूरत संबंधी आंकड़ों को देखते हैं। भारत में लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण के चलते 2019 में 16 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
मरने वालों में बड़ी संख्या नवजात बच्चों की रही। इनमें से अधिकतर बच्चे एक महीने की उम्र के थे। स्विस संस्था आईक्यूएयर की वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2020 के मुताबिक दुनिया के 30 सबसे प्रदूषण शहरों में से 22 शहर भारत के हैं। इस रिपोर्ट को को दुनिया के 106 देशों के डेटा के आधार पर तैयार किया गया है। इसे पूरे साल हवा में पीएम 2.5 के औसत के आधार पर तैयार किया गया है। पीएम 2.5 को कैंसर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार माना गया है। रिपोर्ट के मुताबिक तीस सबसे प्रदूषित शहरों में मेरठ, आगरा, मुजफ्फरनगर, फरीदाबाद, जींद, हिसार, फतेहाबाद, बंधवारी, गुरुग्राम, यमुना नगर, रोहतक, और धारूहेड़ा और मुजफ्फरपुर शामिल हैं। ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की ओर से आईक्यू एयर डाटा के आधार पर बताया गया कि हवा में पीएम 2.5 की वजह से दिल्ली में 2020 में 54,000 लोगों की जान गई। भारत में 2020 तक इलेक्ट्रिक व्हीकल लगभग पांच बिलियन डॉलर का था। 2026 तक इसके 47 फीसदी डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। 2021-2026 तक इसमें सालाना तौर पर लगभग 44 फीसदी तक वृद्धि देखी जाएगी।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन नरेंद्र सैनी कहते हैं कि हवा में ज्यादा प्रदूषण होने से निश्चित ही स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हवा में मौजूद अलग अलग केमिकल और पार्टिकुलेट मैटर के चलते लोगों में अस्थमा, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर, सिर में दर्द, आंखों में जलन, त्वचा पर एलर्जी, सहित कई कम मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। पीएम 2.5 बहुत ही छोटे कण होते हैं जो सांस के साथ आपके ब्लड में पहुंच सकते हैं। इससे कई तरह की मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। ज्यादा प्रदूषण में रहने से हार्ट अटैक जैसी दिक्कत भी हो सकती है।