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शुरू में लॉकडाउन व यात्रा प्रतिबंध से कोरोना पर लगा था प्रभावी अंकुश, अनलॉक के साथ ही बेकाबू होती गई स्थिति

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नई दिल्ली। भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। यहां कोरोना वायरस का संक्रमण बड़े पैमाने पर हुआ। जनवरी 2020 में केरल में कोरोना का पहला केस सामने आया था। इसके बाद मार्च तक यह वायरस पूरे देश में बड़े पैमाने पर फैल चुका था। 25 मार्च 2020 से भारत में लॉकडाउन लगा दिया गया। 31 मई 2020 तक लॉकडाउन के बाद कई बार इसे हटाया और लगाया गया। 27 सितंबर 2020 तक भारत में 59.92 लाख कोरोना केस दर्ज किए जा चुके थे। अच्छी बात यह थी कि भारत में कोरोना की वजह से मरने वालों की संख्या कम रही। भारत में मृत्युदर 2.28 फीसदी रही, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 3 फीसदी रही। कोरोना संक्रमण पर मौसम की वजह से पड़ने वाले असर को लेकर कोई सही अध्ययन सामने नहीं आया था। इस बार जो अध्ययन सामने आया है, उसमें तापमान, रिलेटिव ह्यूमेडिटी और एब्सोल्यूट ह्यूमेडिटी को शामिल किया गया है। इन कारकों को कोरोनाकाल के छह महीनों में जांचा गया है। इस अध्ययन में भारत के चार बड़े शहरों को शामिल किया गया है- दिल्ली, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद।
इन चारों शहरों में दिल्ली के बाद मुंबई में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले आए। इस अध्ययन में इन चारों शहरों का अध्ययन किया गया है, जिसमें लॉकडाउन और सामान्य दिनों का भी विश्लेषण किया गया है, ताकि उष्णकटिबंधीय जलवायु के समय कोरोना के संक्रमण पर ध्यान दिया जा सके। इसलिए गर्मियों और मॉनसून के समय को इस स्टडी में शामिल किया गया है। इसी दौरान इन चारों शहरों में सबसे ज्यादा कोरोना मामले दिखाई पड़े। पिछले साल 17 सिंतबर को भारत में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। शुरुआत में कोरोना पर नियंत्रण बेहतरीन रहा। मामले भी कम आ रहे थे और मौतें भी कम हो रही थीं। इसकी वजह लॉकडाउन और यात्राओं पर प्रतिबंध था। लेकिन जैसे ही 1 जून 2020 से अनलॉक की प्रक्रिया शुरु हुई, धीरे धीरे कोरोना के केस भी बढ़ने लगे और मौतों की संख्या भी बढ़ने लगी। सबसे ज्यादा कोरोना के मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए। पूरे देश में सामने आने वाले कोरोना केस का 21 फीसदी हिस्सा महाराष्ट्र का था।
पुणे में आबादी कम है लेकिन वहां एक लाख की जनसंख्या पर 2890 केस दर्ज किए गए थे। जबकि, उससे ज्यादा आबादी वाले मुंबई में 1679 मामले सामने आ रहे थे। इसका मतलब यह है कि पुणे के मौसम और मुंबई के मौसम के अनुसार वहां पर कोरोना के मामले कम या ज्यादा थे। अप्रैल के अंत में दिल्ली और पुणे में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने शुरु हुए थे। दिल्ली में मई के बाद हर दिन आने वाले कोरोना के केस उच्चतम 3947 तक पहुंच गए थे। लेकिन मध्य जुलाई से ये घटने लगे थे।
दिल्ली में दोबारा कोरोना के मामले सिंतबर में फिर तेजी से आने लगे। एक दिन में 4473 तक पहुंच गए। यह चारों शहरों में सबसे ज्यादा कोरोना केस आने का उदाहरण है। वहीं, मुंबई में मध्य अप्रैल से कोरोना के केस बढ़ने शुरु हुए। पुणे में केस बढ़े लेकिन धीमी गति से। अहमदाबाद में अप्रैल में केस बढ़े, जो जून तक बढ़ते रहे। लेकिन बाकी तीनों शहरों की तुलना में यहां पर प्रति दिन आने वाले कोरोना केस की संख्या 200 से 300 ही थी।
इस अध्ययन में पता चला कि मुंबई और पुणे के औसत तापमान में काफी ज्यादा अंतर था। जबकि, दिल्ली में शुरुआत में तापमान कम था, लेकिन अप्रैल के बाद यह बढ़ना शुरु हुआ और मई में अपने उच्चतम स्तर पर था। अहमदाबाद में भी तापमान अप्रैल-मई में सबसे ज्यादा था। मुंबई में रिलेटिव ह्यूमेडिटी हमेशा ज्यादा ही रही। जबकि बाकी शहरों में रिलेटिव ह्यूमेडिटी मॉनसून के आने पर बढ़ी। यह जून से लेकर अगस्त तक बनी रही। स्टडी में यह बात स्पष्ट हुई कि दिल्ली, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद का मौसम अलग-अलग है। रिलेटिव ह्यूमेडिटी और एब्सोल्यूट ह्यूमेडिटी का तीन शहरों में कोरोना संक्रमण बढ़ने में सकारात्मक योगदान है। अहमदाबाद में यह काम नहीं करता।

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