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वुहान लैब से लीक हुआ था वायरस, आखिर क्यों गहराता जा रहा ?

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बीजिंग। दुनियाभर में करोड़ों लोगों को अपना शिकार बना चुके कोरोना को लेकर कोरोना वायरस के पैदा होने का शक चीन पर बना हुआ है। इसका कारण है अमेरिकी सरकार की हाल में आई एक वह रिपोर्ट जिसमें कहा गया है कि चीन ने बताया था कि कोरोना से किसी के बीमार पड़ने का पहला मामला तो वुहान में 8 दिसंबर 2019 को आया था। लेकिन वायरस के म्यूटेशन रेट की एनालिसिस से साफ हुआ है कि महामारी कई हफ्ते पहले शुरू हो गई होगी। उन्हीं दिनों कोविड महामारी फैलाने वाले वायरस सार्स-कोविड-2 ने वुहान में पांव पसारने शुरू किए थे।

करीब उन्ही दिनों में तीन लोगों को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाना पड़ा। तीनों में कोविड जैसे लक्षण थे।

इस सब के बाद भी चीन लगातार वुहान लैब लीक थ्योरी का विरोध कर रहा है और प्राकृतिक उत्पत्ति के सिद्धांत पर जोर दे रहा है। हालाकि वह इसके पक्ष में कोई सबूत नहीं दे पाया है। लीक थ्योरी को लेकर चीन की भावनाएं कोविड-19 की उत्पत्ति की सच्चाई का पता लगाने में आड़े आ गई है।

  दुनियाभर के वैज्ञानिकों और अमेरिकी इंटेलिजेंस अधिकारियों के हवाले से कई सनसनीखेज बातें सामने आ रही हैं।

शोधकर्ताओं ने अपने सिद्धांत को दो व्यापक आधारों पर आधारित किया है। वायरस के मनुष्यों के बीच प्रसार की कड़ी बनने वाले होस्ट का न होना, एक चमगादड़ में पाए जाने वाले वायरस का जैविक रूप से अपेक्षित म्यूटेशन मनुष्यों के लिए संक्रामक होना और कोरोनावायरस अनुसंधान के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन न करना। दिलचस्प यह है कि किसी भी प्रतिष्ठित एजेंसी ने यह नहीं कहा है कि सार्स-2 का लीक होना वुहान लैब या चीनी सरकार के अथॉरिटीज का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था। वहीं, चीन की ओर से वुहान लैब से केवल 25-30 किलोमीटर दूर स्थित मछली मार्केट को कोविड-19 के प्रकोप क्षेत्र के रूप में साबित करने पर जोर दिया जा रहा है। वुहान लैब कोरोना वायरस पर शोध कर रही है। साथ ही जिस परिवार से सार्स-2 का संबंध उस पर भी शोध किया जा रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि चमगादड़ की प्रजाति जिसे सार्स-2 का स्रोत कहा जाता है, वुहान से लगभग 1,500 किलोमीटर दूर पाई जाती है। चमगादड़ों की ये प्रजाति अपने ठिकाने से 50 किलोमीटर से आगे जाने के लिए नहीं जानी जाती है। इस बात की संभावना बहुत कम है कि वुहान के मछली मार्केट में फैलने से पहले 1500 किलोमीटर की यात्रा करने के दौरान सार्स-2 ने रास्ते में किसी को संक्रमित नहीं किया हो।

कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि सार्स-2 में म्यूटेशन की श्रृंखला का अभाव है। जो यह दर्शाता है कि कोरोना वायरस को लैब में आनुवंशिक रूप से छेड़छाड़ कर बनाया गया है। पिछले नए रोगजनकों से उलट सार्स-2 बिना म्यूटेशन के ही मानव कोशिकाओं के लिए तैयार दिखा। आश्चर्यजनक रूप से शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन चमगादड़ों से सार्स-2 के फैलने की बात कही जाती है, उन्हीं में इस वायरस को वापस समायोजित करने में मुश्किल हुई। दो यूरोपीय वैज्ञानिकों, ब्रिटिश प्रोफेसर एंगस डल्गलिश और नार्वे के डॉ बिर्गर सोरेनसेन के एक नए अध्ययन को ब्रिटिश मीडिया में यह दावा करते हुए कहा गया था कि सार्स-2 की उत्पत्ति एक चीनी प्रयोगशाला में हुई थी। वैज्ञानिकों के हवाले से यह कहा गया था कि उनके पास वायरस को रेट्रो-इंजीनियरिंग से तैयार करने के प्रथम दृष्टया सबूत थे, जिससे यह लगे कि सार्स-2 चमगादड़ से प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ है। चीनी शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस के ट्रैक को छिपाने की कोशिश की। यह अध्ययन जल्द ही कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस के बायोफिजिक्स की त्रैमासिक समीक्षाओं में प्रकाशित किया जाएगा। नए सिरे से कोविड-19 की उत्पत्ति की स्वतंत्र और अबाधित जांच की मांग से चीन पर काफी दबाव बन रहा है। कोरोना वायरस के प्राकृतिक उत्पत्ति के सिद्धांत को खारिज करने वाले प्रभावशाली लोगों में अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ। एंथनी फौसी भी शामिल हैं। जिन्होंने हाल ही में कहा था कि उन्हें यकीन नहीं था कि सार्स-2 ‘प्राकृतिक रूप से विकसित’ हुआ और ‘चीन में क्या हुआ’ यह जानने की कोशिश की।

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