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प्राकृतिक खेती, जल संरक्षण इत्यादि साधनों को अपनाकर प्रकृति को बचाएं और जीवन की रक्षा करें: सुश्री उइके

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रायपुर,। जल को हमारी संस्कृति में एक विशिष्ट स्थान दिया गया है। इतना महत्वपूर्ण स्थान होने के कारण हमें जल की कमी सामना करना पड़ रहा है, इसका कारण जल का अनियंत्रित प्रयोग, प्रदूषण, पर्यावरण असंतुलन इत्यादि है। आज हम इस प्रकृति को बचाने के लिए पर्यावरण और जल संरक्षण करने का संकल्प लें। साथ ही अधिक से अधिक प्राकृतिक खेती को भी अपनाएं। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर द्वारा ‘‘प्राकृतिक खेती और जल संरक्षण’’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार को संबोधित करते हुए कही। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि देश में हम प्राकृतिक खेती अपना लेते हैं तो न बाढ़ की समस्या होगी न जल की कमी की समस्या होगी। साथ ही हमारी भूमि भी पौष्टिक होगी। इससे प्राप्त उत्पादों से कोरोना जैसे बीमारियों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होगी।

राज्यपाल सुश्री उइके ने कहा कि यह विचारणीय विषय है कि जो जल जीवन की उत्पत्ति का आधार है आज उसी की कमी का सामना करना पड़ रहा है और उसका कारण कहीं न कहीं हम स्वयं हैं। जल इतना महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी हमे आज हमें जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। पहले जिन क्षेत्रों में भारी वर्षा होती थी, अब वह सीमित वर्षा के क्षेत्र बन गए हैं। राज्यपाल ने तालाबों के पुनः संरक्षण करने की आवश्यकता जताई। राज्यपाल सुश्री उइके ने कहा कि पर्यावरण असंतुलन की स्थिति से बचने के लिए प्रकृति के अनुकुल कार्य करें और प्राकृतिक खेती को अपनाएं। वास्तव में हमारे द्वारा अधिक उत्पादन के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध उपयोग किया गया, जिसके कारण हमारी जमीन दूषित हुई और मानव समाज को कैंसर जैसे कई समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि हम प्रयास करें कि प्राकृतिक खेती को अधिक से अधिक अपनाएं। इससे उत्पादन तो अच्छा होगा ही, साथ ही पारिस्थितिक संतुलन बना रहेगा एवं हवा शुद्ध रहेगी और तमाम प्रदूषण से हम बच सकेंगे।

राज्यपाल सुश्री उइके ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जल संरक्षण के किए गए आह्वान में सभी को सहभागी बनने की अपील की और कहा कि जिस स्तर पर जैसा भी हो वैसा जल का संरक्षण अवश्य करें। कुछ दिनों में मानसून आने वाला है और अच्छी वर्षा की संभावना है। उन्होंने गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को छत्तीसगढ़ आमंत्रित करते हुए कहा कि आप यहां आएं और छत्तीसगढ़ के किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी दें।

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि हम जंगलों में देखते हैं कि वहां के पेड़-पौधे बिना किसी रासायनिक खाद के बढ़ते हैं और अच्छा फल देते हैं। न उन्हें खाद की आवश्यकता होती है न ही सिंचाई की आवश्यकता होती है। क्योंकि उन्हें प्राकृतिक वातावरण की अनुकुलता प्राप्त होती है। यही अनुकुलता हमें अपने खेतों में अपनानी होगी। उन्होंने देशी गाय की महत्ता बताते हुए कहा कि एक देशी गाय के गोबर और गौमूत्र में वह ताकत होती है जो भूमि की उर्वरता शक्ति में कई गुना बढ़ोत्तरी करते हैं। उनमें ऐसे जीवाणु पाए जाते हैं जो पौधों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। साथ ही उन्होंने केंचुए को बिना मजदूरी के कुशल श्रमिक की संज्ञा देते हुए कहा कि वह ऐसा जीव है जो दिनरात काम करता है और मिट्टी को छिद्रयुक्त बनाता है, जिससे मिट्टी में वर्षा के पानी को सोंखने की क्षमता में वृद्धि होती है और पानी की समस्या से निजात मिलती है। यह केंचुआ ऐसा खाद बनाने में मदद करता है जो पौधों की पोषक तत्व को पूर्ण करता है। लेकिन रासायनिक खादों से केंचुए खत्म हो रहे हैं। यदि हम प्राकृतिक खेती को अपनाते हैं तो हमारे उत्पादन में वृद्धि होगी, स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, पर्यावरण स्वच्छ रहेगा और कोरोना से लड़ने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती से हम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुने करने के लक्ष्य को पूरी करने में सहायता मिलेगी। इस अवसर पर अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति ए.डी.एन. वाजपेयी एवं उच्च शिक्षा विभाग के सचिव धनंजय देवांगन ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस. के. पाटिल, राज्यपाल के सचिव अमृत कुमार खलखो उपस्थित थे।

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