जोहार छत्तीसगढ़-रांची । बलात्कर हमें तभी चुभता है जब वह एक क्रूर कर्म की तरह हमारे बीच आता है. एक सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था के भीतर घट रहे अन्याय के तौर पर रेप पर हमारी नज़र नहीं पड़ती. क्यों नहीं पड़ती है? शायद इसलिए कि स्त्री के प्रति हो रहे बहुत सारे अत्याचारों को लेकर हम बेख़बर रहते हैं- कई बार तो उसमें शामिल भी होते हैं । यह सभ्यता स्त्री को लगातार उपभोग के सामान में बदलती जाती है.यह अकेला मामला नहीं है. जम्मू-कश्मीर से छत्तीसगढ़ तक महिलाओं से बलात्कार के ढेर सारे मामले पिछले दिनों सामने आए- कुछ में कार्रवाई हुई, कुछ दबा और भुला दिए गए । कई बार यह संदेह भी होता है कि बलात्कार को हमारे सत्ता और सैन्य प्रतिष्ठान ने राजनीतिक दमन का एक हथियार बना रखा है. लेकिन ऐसे तमाम मामलों में राष्ट्रीय रोष दिखाई नहीं पड़ता. क्या इसलिए कि जिनके साथ बलात्कार हुआ, वे हमारे लिए राजनीतिक रूप से कुछ असुविधाजनक, सामाजिक तौर पर कुछ पराये और वैचारिक तौर पर कुछ आग्रह्य थीं? भारत (India) के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2010 के बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 7.5 फीसदी वृद्धि हुई है. साल 2012 के दौरान देश में 24,923 मामले दर्ज हुए, जो 2013 में बढ़कर 33,707 हो गई. रेप पीड़ितों में ज्यादातर की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी. हर तीसरे पीड़ित की उम्र 18 साल से कम है. वहीं, 10 में एक पीड़ित की उम्र 14 साल से भी कम है. भारत में हर छह घंटे में एक लड़की का रेप हो जाता है. महिलाओं के साथ रेप के मामले में 4,882 की संख्या के साथ 2017 में मध्य प्रदेश सबसे आगे था. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार] 2017 में देश में 28,947 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना दर्ज की गईं. इस मामले में उत्तर प्रदेश 4,816 और महाराष्ट्र 4,189 रेप की घटनाओं के साथ देश में दूसरे व तीसरे स्थान पर था. नाबालिग बच्चियों के साथ रेप के मामले में भी मध्य प्रदेश देश में सबसे ऊपर है. राज्य में ऐसे 2,479 मामले दर्ज किए गए, जबकि महाराष्ट्र 2,310 और उत्तर प्रदेश 2,115 ऐसी घटनाओं के साथ दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे. पूरे देश में 16,863 नाबालिग बच्चियों के साथ रेप के मामले दर्ज किए गए थे. भारत में रेप के कुछ ऐसे मामले भी हुए, जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया था. इनमें 2012 का निर्भया गैंगरेप, 2013 का 22 वर्षीय फोटो जर्नलिस्ट का गैंगरेप, 2015 का 71 वर्षीय नन का पश्चिम बंगाल के रानाघाट में गैंगरेप, 2016 का दलित लड़की की हत्या व रेप, 2018 का कठुआ रेप केस, 2019 में तेलंगाना गैंग रेेप, राॅची में ‘लाॅ’ की छात्रा से गैंग रेेप शामिल हैं । हमारे देश का कानून कमजोर है, ये सब मानते हैं. अगर कानून सख्त हो तो शायद अपराधिक मामलों की संख्या बहुत कम हो जाती. कमजोर कानून और इंसाफ मिलने में देर भी बलात्कार की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है. देखा जाए तो प्रशासन और पुलिस कमजोर नही हैं, कमजोर है उनकी सोच और समस्या से लड़ने की उनकी इच्छा शक्ति. पैसे वाले जब आरोपों के घेरे में आते हैं तो प्रशासनिक शिथिलताएं उन्हें कटघरे के बजाय बचाव के गलियारे में ले जाती हैं. पुलिस की लाठी बेबस पर जितने जुल्म ढाती है सक्षम के सामने वही लाठी सहारा बन जाती है. अब तक कई मामलों में कमजोर कानून से गलियां ढूंढ़कर अपराधी के बच निकलने के कई किस्से सामने आ चुके हैं. कई बार सबूत के आभाव में न्याय नहीं मिलता और अपराधी छूट जाता है ।