जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़।
रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ वनमंडल अंतर्गत आमगांव क्षेत्र से एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। एक जंगली हाथी ने ग्रामीण भगत राम राठिया को बेरहमी से कुचलकर मार डाला। ग्रामीणों के अनुसार यह हाथी कई दिनों से अपने झुंड से बिछड़कर इलाके में अकेले भटक रहा है। घटना धरमजयगढ़ रेंज के 372 आरएफ जंगल क्षेत्र की है। हाथी द्वारा बार-बार पटकने के कारण मृतक के शरीर पर गंभीर चोटों के निशान पाए गए हैं। सूचना मिलते ही ग्रामीणों और वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर जांच शुरू कर दी है।
क्या यह सिर्फ एक हादसा है या विनाशकारी विकास मॉडल की एक और बलि?
धरमजयगढ़ और रायगढ़ का वन क्षेत्र आज जिस संकट से गुजर रहा है, वह केवल प्राकृतिक नहीं, नीतिगत और प्रशासनिक विफलता का परिणाम है। खनन और उद्योगों के विस्तार के लिए जंगलों को काटा गया, हाथियों के प्राकृतिक गलियारे तहस-नहस कर दिए गए, और अब हाथी गांवों की ओर रुख करने को मजबूर हैं।
हाथी हमले से लगातार हो रही ग्रामीणों की मौत
2024-25 में धरमजयगढ़ क्षेत्र में 11 से भी अधिक लोगों की जान हाथियों के हमले में गई। रायगढ़ जिले की 38 प्रतिशत से अधिक वनभूमि खनन और उद्योगों को सौंप दी गई। कंपनियों द्वारा लगातार जंगलों के बीच खनन कार्य चला रहे हैं।
प्रशासन के पास कागज है, पर समाधान नहीं?
हर घटना के बाद मुआवजे की औपचारिकता होती है। वन विभाग बयान देता है। लेकिन क्या कभी किसी मंत्री, किसी नीति निर्माता ने यह पूछा-हाथी जंगल से क्यों भटक रहे हैं?
अब सीधा सवाल?
पर्यावरण मंत्री जी धरमजयगढ़ जल रहा है, जंगल उजड़ रहा है, आदिवासी मर रहे हैं और आपका मंत्रालय खामोश है। क्या यही पर्यावरण संरक्षण है? क्या विस्थापित वन्यजीवों के लिए पुनर्वास नीति तैयार की गई है?, और सबसे अहम -कब तक हाथियों के कोप का शिकार बनते रहेंगे ग्रामीण?