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उधार के भवन में संचालित हो रहा प्राथमिक शाला टेटकाआमा … पूर्व माध्यमिक और प्राथमिक शाला लगाते हैं एक साथ … दोनों स्कूल के बच्चों को नहीं मिल रहा पोष्टिक मध्यान्ह भोजन … 32 बच्चों के लिए मात्र आधा किलो आलू और एक पाव दाल

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जोहार छत्तीसगढ़-लैलूंगा ।

शासन चाहे लाख दावा करें कि छत्तीसगढ़ में शिक्षा के स्तर में सुधार हो रहे हैं। रायगढ़ जिले में शासन का यहा दवा खोखला साबित हो रहा है। इसकी हकीकत अगर जानना है तो लैलूंगा विकास खण्ड के टेटकाआमा के प्राथमिक शाला और पूर्व माध्यमिक शाला में जा कर देख सकते हैं कि सरकार का दावा सही है। प्राथमिक शाला टेटकाआमा में 3 शिक्षक पदस्थ एवं इस स्कूल में कुल दर्ज संख्या 32 है टेटकाआमा के एक शिक्षिका को घटगांव पूर्व माध्यमिक शाला में संलग्न कर रखे हैं। प्राथमिक शाला भवन पूराना व अति जर्जर हालात में होने के कारण प्राथमिक शाला को पूर्व माध्यमिक शाला भवन के एक कमरे को उधार में लेकर संचालन किया जा रहा है। पूर्व माध्यमिक शाला में मात्र 3 क्लास रूम और एक ऑफिस रूम है। प्राथमिक शाला भी मीडिल स्कूल में लगने के कारण दोनों स्कूलों के बच्चों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। स्कूल के शिक्षकों से बात करने पर बताये कि एक कमरे में प्राथमिक शाला और दो कमरे में मीडिल स्कूल संचालित किया जा रहा है। अब सोचने की बात है कि एक कमरे में 1 से 5 तक क्लास कैसे लगाया जा सकता है। दोनों स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर कुछ नहीं होता है सिर्फ शिक्षक अपना समय बिताने में व्यस्त रहते हैं। क्योंकि बच्चों को बैंठाने के लिए कमरा तक नहीं है एक कमरे में बच्चों को गाय बैल की तरह ठूस-ठूसकर बैठाया जा रहा है। यहां के जनप्रतिनिधियों को इससे कोई मतलब भी नहीं होता है। जनप्रतिनिधि कभी स्कूलों में झाकने तक नहीं जाते हैंं। जिसका ताजा उदाहरण टेटकाआम स्कूल की शिक्ष व्यवस्था का बूरा हाल है।


बच्चों को मध्यान्ह भोजन के नाम पर कुछ नहीं
32 बच्चों के लिए मात्र छोटा सा कड़ाई में थोड़ा सा आलू की सब्जी अधिक से अधिक आधा किलो आलू एक कुकर में 1 पाव दाल को 32 बच्चों के लिए बनाया गया था। ये हम नहीं बोल रहे यह आप तो चित्र में देख सकते हैं, बच्चों के भोजन में किस तरह से डाका डाला जा रहा है। ठीक इसी तरह का हाल मीडिल स्कूल का भी इस स्कूल में 20 छात्र-छात्रा हैं और 20 छात्रों के लिए भी ठीक उसी तरह थोड़ा सा सब्जी बनाकर पूरे बच्चों को परोसा जाता है और शिक्षक अपना कुर्सी में बैठकर देखते रहते हंै। सही मायने में कहा जाये तो दोनों स्कूल में जितना दाल, सब्जी बनाया गया था उतना में तो एक स्कूल के बच्चों को भी सही नियमानुसार अगर खिलायेंगे तो कम होगा।
जनप्रतिनिधि अगर ध्यान देते तो बन जाता स्कूल भवन
जनप्रतिनिधि अगर थोड़ा से भी ध्यान देते तो आज टेटकाआमा स्कूल के बच्चों को इतना अधिक परेशानियों का समाना नहीं करना पड़ता और टेटकाआमा के बच्चों के लिए एक अच्छा सा स्कूल भवन मिल जाता जिससे बच्चों को अच्छा शिक्षा मिल पाता, लेकिन क्या करें विडंबना है कि जिसे हम चुनते हैं यह सोचकर कि क्षेत्र का विकास होगा, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा में सुधार होगा लेकिन सच में ऐसा कुछ नहीं होता है जनप्र्रतिनिधि जीतने के बाद क्षेत्र में झाकने तक नहीं आते हैं जिसके कारण ग्रामीणों को अपना मुलभुत सुविधा से वंचित होना पड़ता है।

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