धरमजयगढ़ । बस्तर दशहरा के बाद धरमजयगढ़ का दुर्गा पूजा एवं दशहरा उत्सव पूरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। किसी भी सरकारी अनुदान के बगैर जनसहयोग से होने वाला आयोजन का यह 60 वां वर्ष है। जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। यहां तांत्रिक विधि विधान से कलकत्ता के पुजारियों द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है। यहां से पंचमी से मां दुर्गा विराजमान होती हैं। आयोजन को सफ ल बनाने के लिए प्रति वर्ष एक समिति का गठन किया जाता है। इस समिति में शहर एवं आसपास गांव के लोग भी बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। इस आयोजन को सफ ल बनाने समिति के सभी सदस्य अध्यक्ष और सचिव के मार्गदर्शन में जोर शोर से मेहनत कर जन सहयोग एकत्रित करती है। आकर्षक एवं भव्य पंडाल से सजा दशहरा मैदान लोगों का मन मोह रही है। प्रति दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होना है जिसमें ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा अपनी प्रस्तुति दी जाती है। दशमी के रात्रि भव्य आतिशबाजी के साथ 50 फि ट का विशाल रावण दहन किया जाता है। रावण दहन पश्चात अपनी क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने वाली पारम्परिक लोक नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। इस वर्ष लगभग दस नाटक मंडलियों ने अपना पंजीयन कराया है। आनन्द मेला देखने लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है हजारों की संख्या में दूर-दूर से लोग देखने आते हैं। दशहरा मैदान के साथ-साथ पूरा शहर दर्शकों से भर जाता है। मेला के दिन पुरे क्षेत्र से लगभग पचास हजार लोग उपस्थित होकर मेला का आनंद उठाते हैं। मेला के दिन पुलिस की भी चाक चौबंद व्यवस्था रहती है ताकि कोई अप्रिय घटना न घटे।