प्रितम जायसवाल कोरबा। जिले के लिए महत्वपूर्ण बहुप्रतीक्षित हाथी अभ्यारण योजना की घोषणा 4 दिन पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त को की थी जिसे लेकर अब क्षेत्र के 5 ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने आज कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचकर ज्ञापन सौंपते हुए विरोध जताया है उनका कहना है कि योजना के लिए प्रस्तावित क्षेत्र लेमरू से जुड़े कई गांव में बसे पहाड़ी कोरवा, पंडो, बिरहोर विशेष संरक्षित जाति राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र एवं आदिवासी सदियों से यहां निवासरत है और खेती किसानी एवं वनस्पति उपज के जरिए जीवन यापन कर रहे हैं हाथी अभ्यारण बनाने से क्षेत्र के वनवासियों को जान माल का खतरा और रोजगार की समस्या सामने खड़ी हो जाएगी इतना ही नहीं ज्ञापन सौंपने आए ग्रामीणों ने हाथी अभयारण्य न बनाकर लेमरू क्षेत्र में ब्लॉक बनाने की मांग की है। आपको बता दें कि प्रदेश के जशपुर, सरगुजा, कोरिया, बलरामपुर, सूरजपुर, कोरबा जैसे जिले लगातार हाथियों से प्रभावित रहे हैं पिछले 3 साल में प्रदेश में करीब 200 लोगों की मौतें हाथियों से हुई वही समय-समय पर फसलों को भी हाथियों ने नुकसान पहुंचाया है और कभी कभी हाथियों से बचने लोगों ने भी हाथियों को नुकसान पहुंचाया है प्रदेश के 5 साल के आंकड़े को देखें तो करीब 15 हाथियों की मौत या तो करंट लगने से हुई या तो मौत का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। यहां तक कि विधानसभा लोकसभा चुनाव में भी हाथियों से नुकसान और उनसे सुरक्षा के मुद्दे राजनीतिक पार्टियां उठाती रही है और हाथी अभ्यारण बनाने की समय-समय पर मांग भी होती रही है वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने कोरबा के लेमरू क्षेत्र को एलीफेंट रिजर्व की घोषणा की थी लेकिन पूर्वर्ती राज्य सरकार इस घोषणा को धरातल पर नहीं ला सकी इसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि 450 वर्ग किलोमीटर के घनघोर लेमरू वन परिक्षेत्र मे घने जंगल के साथ-साथ अपार कोयले का भंडार है जिसके चलते यह योजना अमल में नहीं आ सकी और ठंडे बस्ते में पड़ी रही। लेकिन अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त को कोरबा जिले के घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र के 450 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफ ल को हाथी अभ्यारण हेतु घोषित कर दिया है उन्होंने कहा कि यह हाथी अभ्यारण दुनिया में अपनी तरह का पहला एलीफेंट रिजर्व होगा जहां हाथियों का स्थाई ठिकाना होगा रिजर्व क्षेत्र में उनके मनपसंद खाने के पेड़ पौधे और पानी की व्यवस्था की जाएगी जिसके चलते हाथी खाने की तलाश में बस्तियों में नहीं जाएंगे और हाथियों के आवाजाही करने से होने वाली जान माल की हानियों से भी बचा जा सकेगा घनघोर जंगल में लेमरू हाथी अभ्यारण हाथियों के प्राकृतिक आवास के रूप में विकसित होगा और प्रदेश के लिए जैव विविधता एवं वन्य प्राणी की दिशा में पहला अच्छा प्रयोग साबित होगा। लेकिन जनता के इस विरोध के बाद सरकार की हाथी अभ्यारण बनाने की योजना में अड़चनें खड़ा करती नजर आ रही हैं वन विभाग की मानें तो प्रदेश में इस समय करीब ढाई सौ हाथियों की चहल कदमी देखी जा रही है।