प्रीतम जायसवाल कोरबा। मित्रता आदर और विश्वास का प्रतीक भोजली छत्तीसगढ़ का पारंपरिक व महत्वपूर्ण महोत्सव है। भोजली पर्व को छत्तीसगढ़ में मितान पर्व के रूप में भी मनाया जाता है इस दिन लोग भोजली को एक दूसरे के कान में लगाकर मितान यानी फ्रेंड दोस्त बनाते हैं जो उनके दुख सुख में हमेशा काम आता है
भोजली पर्व को भू जल की कामना करते हुए मनाया जाता है सावन के अंतिम सप्ताह से ही भोजली बोने की तैयारी शुरू हो जाती है , गेहूं, के बीज मिट्टी के बर्तन में बोते है भोजली को छाया में रखकर उगाया जाता है जिससे इसका रंग सुनहरे कलर का होता है लोग आगामी फसल होने के उम्मीद के साथ इन बीजों को हर रोज पानी देते है। भोजली उगाने के लिए मिट्टी के बर्तन का उपयोग किया जाता है जिसमे रोज पानी डालकर बड़ा किया जाता है अंकुरों को भोजली के रूप मे जाना जाता है। भोजली के दिन गांवों, शहरों के इलाके में मेला व महोत्सव का आयोजित किया जाता है। महिलाएं व बच्चे सज बजकर भोजली महोत्सव में शामिल होते हैं इसके बाद भोजली को सर में रखकर भोजली यात्रा निकालते हुए नदी व तालाबों में गीत गाते हुए प्रवाहित कर देते हैं ।