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बदहाल शिक्षा स्तर कहीं झोपड़ी तो कही पेड़ के नीचे लग रहा स्कूल

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जोहार छत्तीसगढ़-जगदलपुर।
प्रदेश में सरकार बदलते रही लेकिन बस अबतक नहीं बदल सका तो वो हैं बस्तर संभाग के सुकमा जिले की बदहाल शिक्षा स्तर। नया शिक्षा सत्र की शुरुआत तो कर दी गई। लेकिन पुरानी समस्याएं बच्चों का पीछा नहीं छोड़ रही है। कोंटा विकासखंड के 17 गांवों में स्कूल भवनों का निर्माण कार्य चल रहा है। समय अवधि पूरा होने के बाद भी भवन अधूरे पड़े हैं। हालत ये है कि ग्रामीण इलाकों में स्कूलों का संचालन कहीं झोपड़ी में, तो कहीं पेड़ के नीचे किया जा रहा है। ये जो आप निमार्णाधीन अधूरे स्कूल भवन, खुले आसमान के नीचे पढ़ाई,झोपड़ी में स्कूल, ये तमाम दुश्वारियां जो देख रहे हंै ये छत्तीसगढ़ राज्य के अंतिम छोर सुकमा जिले के विकासखंड कोंटा के नौनिहालों की किस्मत बन गयी है। कोंटा विकासखंड में इंजराम पंचायत के प्राथमिक शाला गेडापाड़ के 09 बच्चे पेड़ के नीचे पढ़ाई करने को मजबूर हैं तो वहीं भेजी पंचायत में प्राथमिक शाला वेंदेरपारा के 27 बच्चे लकड़ी के झोपड़ी में पढ़ाई कर रहें हैं।
झोपड़ी में स्कूल


इंजरम से भेजी मार्ग पर मौजुद गांव वोंदेरपारा में प्राइमरी स्कूल का संचालन बीते कई सालों से झोपड़ी में चल रहा है। यहां करीब 27 बच्चे पढ़ते हैं। गांव के आगे पुलिस थाना और सीआरएफ कैंप हैं गांव में पक्की सड़क, बिजली, पानी, शिक्षक सब पहुंच चुके हैं लेकिन बस नहीं पहुंच सका तो स्कूल की पक्की भवन। गांव में एक स्कूल बन रहा है जो बीते 3 साल से भवनों को कागजों में निर्माणाधीन बताया जा रहा है। अब एक छोटे से झोपड़ी में कक्षा पहली से पांचवीं तक के बच्चे बैठकर पढ़ते हैं उनमें से कुछ बच्चों को ही हिन्दी बोलने आती हैं। क्या ऐसे शिक्षा सुधार में जिला प्रशासन शिक्षकों से शत प्रतिशत रिजल्ट की मांग करे तो कैसे पूरा किया जा सकता हैं।

पेड़ के नीचे पढ़ते हैं बच्चे

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सबसे ज्यादा हैरान करने वाली तस्वीर गेरापाड़ गांव मेंं देखने को मिली। यहां एक शिक्षिका बच्चों को इमली पेड़ के नीचे बच्चों को अ, आ, इ, ई, पढ़ाती नजर आई। इमली पेड़ के नीचे बच्चों को चटाई पर बैठाकर पढ़ाया जा रहा था। जब हमने शिक्षिका से बात किया तो पता चला ये प्राथमिक शाला गेडापाड़ हैं उन्होंने बताया कि गांव में शाला भवन का निर्माण कार्य चल रहा है। एक दो महीने में काम पूरा हो जाएगा। लेकिन तब तक इमली का पेड़ा या फिर मवेशियों को बांधने की झोपड़ी ही उनका सहारा है। गांव वाले से जब बात किया गया तो उन्होंने बताया पिछले 5 सालों से स्कूल भवन का कार्य चल रहा हैं तब से स्कूल यही पेड़ के नीचे लगता हैं। यहां अधिकारी नहीं आते अब हर रोज केवल शिक्षक आते हैं बच्चों को यहां पढ़ाते हैं और चले जाते हैं।

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