जोहार छत्तीसगढ़-जांजगीर चांपा।
करवा चौथ हर वर्ग, आयु, जाति के हिन्दू सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है जिसे कर्क चतुर्थी भी कहते है। इस दिन सुहागिन महिलायें अपने पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन सुखमय होने की कामना पूर्ति के लिये निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार करवा चौथ आज 24 अक्टूबर रविवार को पड़ रही है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि व्रत रखने का अर्थ ही है संकल्प लेना। वह संकल्प चाहे पति की रक्षा का हो, परिवार के कष्टों को दूर करने का या कोई और। यह संकल्प वही ले सकता है जिसकी इच्छा शक्ति मजबूत हो। यह पर्व संकेत देता है कि स्त्री अबला नहीं, बल्कि सबला है और वह भी अपने परिवार को बुरे वक्त से उबार सकती है। करवा चौथ की प्रचलित कथाओं में स्त्रियां सशक्त भूमिका में नजर आती है, इस देश में सावित्री जैसे उदाहरण हैं, जिसने अपने पति सत्यवान को अपने सशक्त मनोबल से यमराज से छीन लिया था। उन्होंने आगे बताया कि पांच साल बाद फि र इस करवा चौथ पर शुभ योग बन रहा है। करवा चौथ पर इस बार रोहिणी नक्षत्र में पूजन होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस नक्षत्र में व्रत रखना बेहद शुभ होता है। मान्यता है कि इस नक्षत्र में चंद्रमा दर्शन मनवांछित फल प्रदान करता है। वहीं रविवार का दिन होने की वजह से सूर्यदेव का भी व्रती महिलाओं को आशीर्वाद प्राप्त होगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पांच साल बाद करवा चौथ रविवार को पड़ रही है। इसके पहले 08 अक्टूबर 2017 को रविवार के दिन ये व्रत रखा गया था। यह व्रत पति पत्नी में भावनात्मक लगाव और विश्वास को बढ़ाता है। इस व्रत को पहली बार करवा चौथ यानि नवविवाहिता महिलाओं के लिये बहुत अच्छा फलदायी बताया जा रहा है।करवा चौथ का पर्व महिलाओं के लिये सुखद अहसास है जिनका उन्हें साल भर इंतजार रहता है। ये व्रत चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद पूरा होता है ए इसलिये चांद निकलने का व्रत रखने वाली सभी महिलाओं की नजर आसमान की ओर रहती है ए सबको चांद का बेसब्री से इंतजार रहता है। चांद दिखने का समय हर जगह के लिये अलग.अलग होता है। कहीं कुछ समय पहले चांद दिखाई देने लगता है तो कहीं पर थोड़ा इंतजार भी कराता है। इस व्रत में कहीं सरगी खाने का रिवाज है तो कहीं नही भी है। करवा चौथ के दिन पति की लंबी उम्र के लिये सुहागिनों को प्रार्थना के साथ निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिये ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।।
किवदंती के अनुसार महाभारत काल से यह व्रत किया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने अर्जुन के लिये इस व्रत को किया था। आज के दिन सभी सुहागिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य, सौभाग्य एवं सुखद दांपत्य की कामना के लिये यह व्रत रखती हैं जो बहुत ही कठिन होता है। इस व्रत में कुछ नियम है जिनका कड़ाई से पालन किया जाता है। इस व्रत अवधि में जल भी ग्रहण नहीं किया जाता अर्थात निर्जला रखा जाता है। यह व्रत सूर्योदय से पहले और चांद निकलने तक रखा जाता है। रात्रि में चाँद और पति का दीदार के लिये सुहागिन स्त्रियाँ चाँद के उदय होने का इंतजार करती हैं। मान्यता है कि चांद दर्शन के बाद ही व्रत पूरा होता है ए उसके बाद ही महिलायें व्रत का समापन करती हैं। यह भी कहा जाता है कि बिना चांद दर्शन के व्रत का पूरा.पूरा फल नहीं मिलता है। चाँद निकलने पर शिव परिवार की पूजन करती हैं। फि र छलनी में घी का दीपक रखकर चंद्रमा को अघ्र्यं देकर ए छलनी में से चंद्रमा के साथ अपने चाँद यानि पति का चेहरा देखती हैं। फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं और पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। करवा चौथ के व्रत में माता पार्वती समेत शिव परिवार की पूजा की जाती है। इस दिन खास तौर पर गणेश जी का पूजन होता है और उन्हें ही साक्षी मानकर व्रत शुरु किया जाता है। गणेश जी को चतुर्थी का अधिपति देव माना गया है। पूजा करते और कथा सुनते समय सींक रखने की परंपरा है जो करवा माता की उस शक्ति का प्रतीक है जिसके बल पर उन्होंने यमराज के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त के खाते के पन्नों को उड़ा दिया था। पूजन के पश्चात अघ्र्य दिये जाने का विधान है। करवा यानि मिट्टी का एक प्रकार का बर्तन जिसके द्वारा चंद्रमा को अघ्र्य दिया जाता है , यहां अघ्र्य का मतलब चंद्रमा को जल देने से है। महिलाओं को श्रद्धा और सामथ्र्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल अथवा मिट्टी का करवा भरना चाहिये। इस व्रत में चंद्रमा को अध्र्य देकर चलनी से चंद्रमा को देखने के बाद पति को देखते है। इसके बाद पति अपने पत्नी को अपने हाथों से पानी पिलाकर व्रत खुलवाते हैं। इस दिन करवे में जल भरकर कथा सुनने का विधान है। चंद्रमा के माता का कारक होने की वजह से करवाचौथ के दिन किसी भी महिला को अपनी सास, मां या फि र दूसरी महिला का अपमान नहीं करना चाहिये। करवा चौथ वाले दिन महिलायें सफेद रंग की चीजें जैसे दही, चावल, दूध या फि र सफेद रंग का कपड़ा किसी को ना दें क्योंकि सफेद रंग चंद्रमा का कारक माना जाता है। इस दिन इन चीजों का दान करने से आपको आपकी पूजा का फ ल नहीं मिलेगा। इस दिन महिलायें काले, नीले और भूरे रंग के कपड़े पहन कर पूजा ना करें इससे उसको पूजा का फ ल नहीं मिलता है।
चलनी से चांद देखने का कारण
करवा चौथ के दिन महिलायें चलनी से अपनी पति को देखती हैं। चलनी से चांद देखने की इस परंपरा की कल्पना चंद्रमा और भगवान ब्रह्मा से की गई है। चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है, साथ ही चांद में शीतलता, शालीनता, प्यार, जगत प्रसिद्धि जैसे गुण समाहित हैं। इसलिये करवा चौथ पर सभी महिलायें चलनी से चांद को देखकर ये कामना करती हैं कि उनका पति भी चांद जैसे गुणों से परिपूर्ण हो।
कौन रख सकती हैं यह व्रत
कुंवारी कन्यायें अक्सर कहा जाता है है कि करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलायें ही रख सकती हैं ए लेकिन ऐसा नहीं है। मन चाहा वर पाने की इच्छा रखने वाली कुंवारी कन्यायें भी इस दिन करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं। कुंवारी कन्याओं को निर्जला की जगह निराहार व्रत रखनी चाहिये क्योंकि निर्जला व्रत शादी के बाद ही रखा जाता है। इस दिन ये व्रती सरगी की जगह फ ल खाती हैं। इस दिन कुंवारी कन्याओं को चांद देखकर नहीं बल्कि बिना छलनी के तारों को अघ्र्य देकर व्रत पारण नहीं करना चाहिय सगाईशुदा लड़कियां ,जिन लड़कियों की सगाई हो चुकी है और कुछ दिनों में शादी होने वाली है वे लड़कियां भी अपने होने वाले पति के लिये करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं। सुहागिन महिलाओं की ही तरह ये लड़कियां भी पूरा दिन निर्जला रहकर पति की लंबी आयु के लिये व्रत रखती हैं। सास के यहां से मिली सरगी खाती हैं और रात के समय पति की फ ोटो या वीडियो कॉल के जरिये पति को देखर व्रत का पारण करती हैं पत्नी सहयोगी पति , आजकल नई नवेली सुहागिनों के पति भी अपनी पत्नी के प्रति प्यार जताने के लिये करवा चौथ का व्रत रखते हैं। वे भी पत्नी की तरह दिन भर भूखे रहकर अपना प्यार जताते हैं। लेकिन पतियों के लिये करवा चौथ का ऐसा कोई नियम नहीं होता। पत्नी के साथ वे भी दिन भर भूखे,प्यासे रहकर साथ में ही व्रत का पारण करते हैं।