Home देश कन्हैया कुमार इसी महीने थाम सकते हैं कांग्रेस का हाथ

कन्हैया कुमार इसी महीने थाम सकते हैं कांग्रेस का हाथ

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नई दिल्ली ।  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी इस महीने के आखिर तक कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस से जुड़े विश्वस्त सूत्रों ने शनिवार को कहा है कि अगर पंजाब प्रदेश कांग्रेस में चल रही उथल-पुथल अगले कुछ दिनों में पूरी तरह खत्म हो गई तो कन्हैया और जिग्नेश 28 सितंबर को शहीद भगत सिंह की जयंती पर कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, गुजरात प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल इन दोनों युवा नेताओं और कांग्रेस के नेतृत्व के बीच बातचीत की मध्यस्थता कर रहे हैं। कांग्रेस के एक सूत्र ने बताया, ‘अगर पंजाब कांग्रेस में राजनीतिक स्थिति पूरी तरह सामान्य हो गई, तो कन्हैया और जिग्नेश 28 सितंबर को कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।’ मूल रूप से बिहार से ताल्लुक रखने वाले कन्हैया जेएनयू में कथित तौर पर देशविरोधी नारेबाजी के मामले में गिरफ्तारी के बाद सुर्खियों में आए थे। वह पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ भाकपा के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे, हालांकि वह हार गए थे। दूसरी तरफ, दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जिग्नेश गुजरात के वडगाम विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक हैं। इस साल की शुरुआत में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। जितिन प्रसाद और सुष्मिता देव ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। एक ओर जहां जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए, वहीं देव तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का हिस्सा बन गईं। जब पार्टी के कई दिग्गज नेता साथ छोड़ रहे हैं, ऐसे में पार्टी को पुनर्जीवित करने और युवा चेहरों को सबसे आगे लाने के लिए राहुल गांधी गुजरात विधानसभा सदस्य (एमएलए) जिग्नेश मेवाणी सहित अन्य युवा नेताओं के साथ बातचीत कर रहे हैं। कन्हैया कुमार को उनकी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘पूरब के लेनिनग्राद’ के नाम से मशहूर बेगूसराय सीट से उम्मीदवार बनाया था, जहां से भारती जनता पार्टी  (बीजेपी ) ने अपने फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह को अखाड़े में उतारा था। इस चुनाव में कन्हैया कुमार ने खुद को बेगूसराय का बेटा बताकर लोट मांगा। हालांकि उन्हें निराशा हाथ लगी थी। गिरिराज सिंह ने उन्हें 4 लाख 20 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी थी।

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