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उत्पादन की बेहतर तकनीक और बाजार की बारीकियां समझ सफलता हासिल कर रही हैं महिलाएं

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रायपुर, । अपनी श्रम से आमदनी अर्जित कर रही महिला स्वसहायता समूहों ने एक नई पहचान बनाई है। घर की चारदीवारी के बाहर निकलकर वे पूरे साहस के साथ आगे बढ़ रही हैं। कठिनाईयां थीं लेकिन बुलंद हौसलों के सामने वे टिक नहीं पाई। राज्य के हर कोने से आती महिलाओं की सफलता और साहस के किस्से आम लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण, बाजार से क्रय-विक्रय करने का कौशल सिखाने के साथ-साथ ऋण उपलब्ध कराने सहित हर सुविधा उपलब्ध करा रही है। इसी कड़ी में दुर्ग जिले के वर्ष 2019 से अब तक 3676 समूह गठित किये जा चुके हैं। इनमें वर्मी कंपोस्ट से लेकर सैनेटाइजर निर्माण तक अनेक गतिविधियां हो रही हैं।
इन समूहों ने बैंकों से लगभग 29 करोड़ रुपए का ऋण लिया है। बिहान योजना के माध्यम से इन्हें 3.60 करोड़ रुपए की चक्रीय निधि एवं 5 करोड़ 65 लाख रुपए की सामुदायिक निवेश निधि उपलब्ध कराई गई है। इसका सदुपयोग कर वे शानदार कार्य कर रही है। दुर्ग जिला पंचायत सीईओ ने बताया कि बैंक लिंकेज, ब्रांड मेकिंग के लिए प्रशिक्षण और बाजार उपलब्ध कराना, इन तीनों बिन्दुओं पर कार्य किया गया है। इसके अच्छे परिणाम सामने आये हैं और आर्थिक भागीदारी के लक्ष्य की ओर महिलाएं तेजी से अपने कदम बढ़ा रही हैं।
अब तक इन समूहों ने 2 करोड़ 75 लाख रुपए की बचत की है। इन समूहों के लिए सबसे अच्छा अवसर नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के माध्यम से आया। 263 गौठानों में 664 स्व-सहायता समूह बने। इनमें 450 समूहों ने गोधन न्याय योजना के अंतर्गत वर्मी कंपोस्ट निर्माण का कार्य किया। इससे उन्हें 1 करोड़ 66 लाख रुपए की आय अर्जित हुई। शेष 214 समूहों ने सामुदायिक बाड़ी, मछली पालन, मुर्गी पालन, बटेर पालन, गोबर का गमला, दीया, राखी निर्माण जैसी गतिविधि संचालित कर 54 लाख रुपए की आय अर्जित की।
संवहनीय कृषि के अंतर्गत जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जिन 80 ग्रामों का चयन किया गया उनमें 6949 महिलाओं ने इसके लिए कार्य किया। ऐसे 254 समूहों की महिलाओं ने उच्च गुणवता के अगरबत्ती, साबुन, फिनाइल, डिश वाश, हैंडवाश, सैनेटाइजर, आचार, बड़ी, पापड़ जैसे स्थानीय उत्पादों का निर्माण कर रही है।

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