भोपाल । वनकर्मियों के बच्चों के लिए बने ट्रांजिट होस्टल को इन दिनों बंगले में तब्दील किया जा रहा है। बताया जा रहा है अब यह वनमंत्री विजय शाह का आशियान बनेगा। मार्च से होस्टल के कायाकल्प का काम चल रहा है। हालांकि अफसर उसे आफिस बताने में लगे है, जबकि वहां घर से जुड़ी प्रत्येक सुविधा जुटाई जा रही है। इस पर खर्च करने के लिए दूसरे मद तक का इस्तेमाल हो रहा है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक 37 साल पहले ट्राइबल फंड से होस्टल बनाया था। बरसों तक छात्र ठहरे भी। मगर कुछ साल से अफसर अपने हिसाब से भवन का इस्तेमाल करने में लगे है। इसका फायदा उठाते हुए इंदौर वन विभाग के अफसरों ने कायाकल्प करने की हरी झंडी दी है।
दरअसल रेडियो कालोनी स्थित बंगला नं. एक को जिला प्रशासन ने सन 1983-84 में वन विभाग को दिया। यहां शासन से ट्राइबल फंड से ट्रांजिट होस्टल बनाया गया। तब दो लाख 69 हजार रुपए से निर्माण कार्य पूरा हुआ। कुछ कमरें बनाए थे। उस दौरान विभाग ने सिर्फ आदिवासी इलाकों से आने वाले वनकर्मियों के बच्चों को रहने की अनुमति दी। कुछ सालों तक नियमों का पालन हुआ, जिसमें धार, आलीराजपुर, झाबुआ सहित अन्य इलाकों से बच्चें रहे।
डीएफओ रहने पर शुरू हुई खींचतान
2004-05 में तत्कालीन डीएफओ पीके चौधरी ने बच्चों को बाहर निकलकर वहां निवास बनाया। उस दौरान होस्टल को बंगला बना दिया। करीब 14 लाख रुपये खर्च किए गए। इसे लेकर तत्कालीन कलेक्टर ने जांच भी करवाई। कुछ समय तक होस्टल खाली रखा गया। फिर पूर्व वन संरक्षक राघवेंद्र श्रीवास्तव भी रहे। काफी समय परिवार होस्टल में रहा। जून 2016 में विभाग ने एक लाख 83 हजार की वसूली निकाली।
आइएफएस के बेटे भी रहे
भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के अधिकारियों ने अपने बच्चों को भी यहां रखा। 2013-16 के बीच इको टूरिज्म के तत्कालीन सीईओ सतीश त्यागी, तत्कालीन सीसीएफ पीसी दुबे, तत्कालीन सीएफ विक्रम सिंह परिहार, एपीसीसीएफ जव्वाद हसन के बेटे बरसों तक रहे। शिकायतकर्ता पवन श्रीवास्तव ने आपत्ति ली और विभाग से वसूली करने पर जोर दिया। 50 से डेढ़ लाख रुपए भी वसूले गए। बाद में 2019 में तत्कालीन सीसीएफ एम कालीदुरई ने भी कुछ महीनों के लिए ईओडब्ल्यू के वरिष्ठ अधिकारियों को भी ठहराया।
मार्च से शुरू हुआ काम
मार्च 2021 में वन संरक्षक नरेंद्र पांडवा के आने के बाद एक बार फिर कायाकल्प शुरू हुआ है। विभाग की संपति में अभी रेडियो कालोनी स्थित बंगला नं 1 ट्रांजिट होस्टल के नाम पर दर्ज है। नियमानुसार इसके उपयोग से जुड़े नियम बदलने का वन विभाग के पास नहीं है। भवन में फ्लोर से लेकर फर्नीचर, बेडरूम और किचन व बाथरूम तक का काम करवाया जा रहा है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक 25 लाख रुपए खर्च किए जा रहे है।