भोपाल । बीएचईएल (भेल) प्रबंधन पर दबाव बनाने में भेल की कर्मचारी यूनियनें नाकाम साबित हो रही है। यहीं वजह है भेल प्रबंधन लगातार मनमानी करने पर उतारु हो गया है। कोरोना काल में देश की महारत्न कंपनी भेल मन की कर रहा है। तीनों प्रतिनिधि यूनियनें राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस, ऑल इंडिया भेल एम्प्लोई यूनियन और भारतीय मजदूर संघ भेल प्रबंधन पर कर्मचारियों के हित व उनकी सुविधाओं निरंतर संचालित करने के लिए दवाब नहीं बना पा रही हैं। एक तरफ भेल की ओर से संचालित स्कूलों की फीस माफ नहीं की जा रही है दूसरी ओर भेल कारखाने की तीनों कैंटीनों को सब्सिडी देकर संचालित नहीं किया जा रहा है। वहीं भेल टाउनशिप में कोई विकास व मरम्मत कार्य नहीं हो रहे हैं। स्थिति यह है कि प्रबंधन कर्मचारियों के खर्चों में कटौती करती जा रही है और तीनों प्रतिनिधि यूनियनें कुछ नहीं कर पा रही हैं। फिर चाहे ठेका श्रमिकों के वेतन में की गई कटौती की बात हो या फिर कर्मचारियों के खर्चों में बीते दो सालों में की गई कटौती की। यूनियनें हर मोर्चें पर प्रबंधन के सामने घुटने टेक रही हैं।
भेल प्रबंधन में ठेका प्रथा के चलते आ यह स्थिति है कि स्थाई कर्मचारी करीब पांच हजार बचे हैं ओर ठेका श्रमिकों की संख्या सात हजार के पार हो गई है। यूनियनें समय-समय पर धरने-प्रदर्शन करके भेल प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा तो खोलती हैं, लेकिन एकजुटता नहीं होने से धरने व प्रदर्शन अंजाम तक नहीं पहुंच रहे हैं। भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष विजय कठैत ने बताया कि प्रबंधन पर दवाब बनाने में हम कामयाब हैं। यूनियनों की बात प्रबंधन के साथ होने वाली बैठकों में सुनीं जाती हैं। उधर ऑल इडिया भेल एम्प्लोई यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव रामनारायण गिरी ने बताया कि प्रबंधन के खिलाफ धरने-प्रदर्शन के कारण कोरोना काल में कोरोना से बचाव के इंतजाम किए गए। ठेका श्रमिकों के वेतन में अगले समझौते में सुधार करने का आश्वासन दिया गया। हमारी यूनियन हर मोर्चें पर प्रबंधन को घेरती है।