जम्मू । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में राज्य से जुड़े हर पहलू पर बात हुई। जम्मू-कश्मीर से जुड़े नेताओं के गिले-शिकवे भी सामने आए। केंद्र की ओर से ‘हीलिंग टच’ की कोशिश भी हुई। कई मुद्दों पर गतिरोध भले ही न टूटा हो लेकिन धारा-370 हटाये जाने के बाद हुई इस पहली बैठक को कश्मीरी मामलों के जानकार बहुत ही महत्वपूर्ण कदम बता रहे हैं। कश्मीर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर प्रोफेसर गुल मोहम्मद वानी का कहना है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई पहली बैठक से ही सभी तरह के नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन इस पहल का स्वागत घाटी में सभी ने किया है। राज्य के सभी राजनीतिक दल इसमे शामिल हुए। बातचीत का रास्ता खुला। अब आगे का रोडमैप तय हो सकता है। इससे दो साल से जमी बर्फ कुछ जरूर पिघली है। प्रोफेसर वानी का कहना है कि पिछले करीब दो साल से घाटी में बहुत असंतोष था।
बहुत परेशानियां लोगों ने झेली हैं। हम अगर ईमानदारी से जम्मू-कश्मीर के सभी पहलुओ पर आगे बढ़ते हैं तो कुछ नतीजे सामने आ सकते हैं। राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत की उम्मीद बंधी है। प्रोफेसर वानी ने कहा कि नेताओं के साथ युवाओं को भी भरोसे में लेने की जरूरत है। युवाओं को सुनने की जरूरत है। उन्होंने कश्मीर में युवाओं के साथ अपने संवाद का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि युवाओं को स्थानीय स्तर पर राजनेताओं द्वारा अनदेखा किया गया है, पाकिस्तान राज्य द्वारा शोषित किया गया है और भारतीय राज्य द्वारा वंचित किया गया है। कश्मीर के युवा आंशिक रूप से अकेलेपन से पीड़ित हैं और किसी न किसी चीज के लिए तरस रहे हैं जो वहां नहीं है। एक नए रोड मैप की आवश्यकता है। प्रोफेसर वानी ने कहा केंद्र को अपना संपर्क बढ़ाना चाहिए और जो भरोसा टूटा है उसकी बहाली के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।