भोपाल । अचार गुठली, आंवला, हर्रा, बहेड़ा समेत ज्यादा लघु वनोपज के व्यापार में बिचौलियों का कब्जा है और सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदी न के बराबर है। वन विभाग की अपनी दुकानें भी शोपीस साबित हो रही है। इससे जंगलों में रह रहे आदिवासियों की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं आ पा रहा है। फिलहाल वनोपज की सरकारी खरीदी बढ़ाने के लिए सीसीएफ ने लघु वनोपज यूनियन संचालकों को पत्र लिखा है।
मप्र में 53 वानिकी प्रजातियां पाई जाती हैं। राज्य शासन ने 32 लघु वनोपजों की खरीदी का सरकारी समर्थन मूल्य घोषित किया है। मैदानी स्तर पर देखने में आया है कि लघु वनोपज को खरीदने में बिचौलिए जितनी तेजी दिखाते है उतने मैदानी वन अधिकारी-कर्मचारी नहीं। इसके चलते लघु वनोपज का 99 प्रतिशत व्यापार बिचौलियों के हाथों में हैं। वे वनवासियों से अत्यंत कम मूल्य पर वनोपज खरीदते हैं। इससे कभी भी इन लोगों की आर्थिक स्थिति सुधर नहीं रही है। ये लोग कीमती वन संपदा होने पर भी गरीब बने हुए हैं और बिचौलिए लाखों-करोड़ों रुपए के मालिक बनते जा रहे हैं। विभाग आर्थिक असमानता को समाप्त करने में नाकाम रहा है।
वनांचल के ग्रामीणों का आय का जरिया वनोपज
वनांचल क्षेत्र के अंधिकांश गांवों में ग्रामीणों के मुख्य आय का जरिया वनोपज है। इसी से जीवन निर्वहन करते आ रहे हैं। जंगल तथा पहाड़ी इलाके में भारी मात्रा में वनों से वहां निवास करने वाले लोगों को कई प्रकार के आर्थिक लाभ मिलता है किन्तु हाट बाजारों, छोटे दुकानों में औने पौने दाम के चक्कर में अपने वनोपज को बिचौलियों के पास बेच देते हैं। ग्रामीण तपती धूप में तरह-तरह के लाख, हर्रा, चार, चिरौंजी, टोरी, महुआ, साल सरई, कोसम, रसना जड़ी अनेक वनोपज एकत्र करते हैं। भले ही सरकार द्वारा वनोपज खरीदी करने के लिए कई तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं लेकिन यह इस वनांचल क्षेत्र में सिर्फ कागजों पर हो रहा है। वनांचल में निवास करने वाले लोग पूरे साल भर वनोपज का संग्रहण कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
व्यापारियों से तुरंत मिलता है पैसा, इसलिए बेचते हैं वनोपज
गौरतलब है कि सरकार वनोपज का समर्थन मूल्य घोषित कर लघु वनोपज के माध्यम से खरीदी करने की व्यवस्था की है, हालांकि बाजार में वनोपज की खरीदी समर्थन मूल्य में करने की छूट दी है जिसके चलते संग्राहक लघु वनोपज समितियों व स्व सहायता समूहों के बजाय बाजार में व्यापारियों के पास विक्रय करते हैं क्योंकि उन्हें व्यापारियों के पास वनोपज बेचने पर तत्काल नगद पैसा मिलता है और वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।