जेनेवा । संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान विद्रोहियों ने सरकार के साथ शांति वार्ता करने के लिए अफगानिस्तान में हिंसा के स्तर को कम करने का कोई संकेत नहीं दिया है और वे 2020 में अपनाये गए हिंसा के रवैये को इस साल भी बरकरार रखते हुए अपनी सैन्य स्थिति को मजबूत करने की कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हैं। एक नई रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की एक समिति ने कहा कि तालिबान को उन हत्याओं के लिए जिम्मेदार बताया गया है, जो कि हिंसा का प्रतीक बन गई है। इनमें सरकारी अधिकारियों, महिलाओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों एवं अन्य को निशाना बनाया गया है। समिति ने कहा कि ये हमले सरकार की क्षमता को कमजोर करने और नागरिकों को डराने के उद्देश्य से किए गए प्रतीत होते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को 22 पृष्ठ की रिपोर्ट में समिति ने कहा कि 11 सितम्बर तक अमेरिका और नाटो बलों की वापसी, अमेरिका पर 2001 के आतंकवादी हमलों की बरसी से अफगानिस्तानी बलों के समक्ष अपने हवाई अभियान को सीमित करने, कम सैन्य समर्थन और प्रशिक्षण में व्यवधान जैसी चुनौतियां सामने आएगी।
अफगानिस्तान में 2001 में अमेरिका नीत गठबंधन ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था। तालिबान और अफगानिस्तानी प्रतिनिधियों के बीच बातचीत दोहा, कतर में पिछले सितम्बर में शुरू हुई थी और इस साल की शुरुआत तक चली थी, लेकिन तालिबान ने 13 अप्रैल को घोषणा की कि वह तब तक अफगानिस्तान के भविष्य का फैसला करने के उद्देश्य से किसी भी बैठक में भाग नहीं लेगा जब तक कि सभी विदेशी सैनिक नहीं चले जाते। तालिबान के खिलाफ प्रतिबंधों की निगरानी करने वाले संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने सैनिकों के जाने से पहले और अधिक हिंसा की आशंका जताई है। विशेषज्ञों ने यह भी सवाल किया कि गठबंधन के समर्थन के बिना अफगान सेना का प्रदर्शन कैसा होगा। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तानी बलों ने अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की सहायता से तालिबान विद्रोहियों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया है लेकिन इसमें कई लोग भी हताहत हुए है। अभी यह देखा जाना है कि अफगानिस्तानी सेना इसके बिना कैसा प्रदर्शन करती है।