नई दिल्ली । उत्तरप्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव से पहले दलितों को लुभाने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर बाबा साहेब वाहिनी के गठन का ऐलान कर दिया था। अपने इस ऐलान के साथ अखिलेश यादव ने कहा था कि संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों को सक्रिय कर असमानता-अन्याय को दूर करने तथा सामाजिक न्याय के समतामूलक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, हम उनकी जयंती पर जिला, प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर सपा की बाबा साहेब वाहिनी के गठन का संकल्प लेते हैं। इसके दो दिन पहले यादव ने कहा था, भाजपा के राजनीतिक अमावस्या के काल में वह संविधान खतरे में है, जिससे बाबा साहेब ने स्वतंत्र भारत को नई रोशनी दी थी। इसलिए बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर की जयंती को सपा उत्तर प्रदेश, देश और विदेश में दलित दीवाली मनाने का आह्वान करती है।
यादव से दलित दीवाली के नाम को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि नाम में क्या रखा है, नाम तो कोई भी हो सकता है, आंबेडकर दीवाली, संविधान दीवाली, समता दिवस-नाम कुछ भी रखा जा सकता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि डॉ राम मनोहर लोहिया और बाबा साहेब ने मिलकर काम करने का संकल्प लिया था और अगर सपा आंबेडकर के अनुयायियों को गले लगा रही है तो भाजपा और कांग्रेस को तकलीफ क्या है। अखिलेश यादव की नजर अब उत्तर प्रदेश में दलित वोटों पर है। हालांकि प्रदेश में मायावती की दलित वोटों पर अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है। लेकिन कहीं ना कहीं अखिलेश यादव का यह कदम मायावती को रास नहीं आएगा। जिस तरीके से 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बाद अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के साथ दलित वोटों का जुड़ाव हुआ था उसे वह अब बरकरार रखना चाहते है। यही कारण है कि अखिलेश यादव की ओर से बाबा साहेब के नाम पर वाहिनी बनाने का ऐलान किया गया। उन्हें उम्मीद है कि जैसा समर्थन 2019 के लोकसभा चुनाव में दलितों की ओर समर्थन मिला था वैसा ही कुछ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी मिल सकता है।