बिलासपुर । चिकित्सा मुहैया कराना सरकार का काम है। 1 साल से कोरोना संकट है सरकार और स्थानीय प्रशासन ने समय रहते ठोस पहल और इंतजाम किया नही, अब स्टाफ और सुविधाएं बढ़ाने, निजी अस्पतालों में बेड आरक्षित कराने दावा किया जा रहा। हालात ये है कि निजी अस्पताल संचालक बिना माल जमा कराए पीडि़त को भर्ती लेने तैयार नही। यही वजह है कि इस महामारी में लोग दम तोड़ रहे।
साल भर से लाकडाउन और धारा 144 का माहौल है, लोगो की नौकरी चली गयी, रोजी रोजगार चला गया। फिर लाकडाउन लगा तो लोगों को जेवर, बर्तन बेच राशन, दवाई का इंतजाम करना पड़ा।
संक्रमितों की संख्या बढ़ रही, कोरोना से मौत का आंकड़ा बढ़ रहा, और यूनिवर्सल हेल्थ केयर की बात करने वाली सरकार इस संकटकाल में 5 लाख और 50 हजार तक कि चिकित्सा सेवा देने, अस्पतालों के लिए स्टाफ भर्ती करने, निजी अस्पतालों के शुल्क तय करने दावा ही कर रही।
सवाल यह उठ रहा कि आखिर जेवर, बर्तन बेचकर दो वक्त की रोटी का बमुश्किल इंतेजाम करने वाले लोग इलाज के लिए पैसा लाये कहा से।
डॉ. मैं हार के आया अब क्या जमा कराऊँ
बड़ी विकट स्थिति है, गुरुवार को एक मीडिया कर्मी का परिवार संक्रमित निकला तो उन्हें पण्डित सुंदरलाल शर्मा सेंटर में भेज दिया गया। घर मे मीडिया कर्मी का ढाई साल का बच्चा और एक सदस्य बच गए, बच्चे की रिपोर्ट भी पॉजीटिव आ गयी । रात में बच्चे को लेकर उस परिवार का एक मात्र सदस्य 1 निजी अस्पताल में लेकर पहुँचा तो डॉक्टर ने पहले 10 हजार रुपये जमा कराने पर ही एडमिट करने की बात कह दी। परिवार दूसरी जगह भर्ती ऐसे में उस सदस्य ने किसी तरह 10 हजार का प्रबंध कर जमा कराया तब कहीं बच्चे का उपचार शुरू हो सका। सवाल यह उठता है, कि जब संकट पेट पालने का है तो इलाज के लिए पैसा कहा से लाये।
डॉ. भी विवश
साथी पत्रकारों ने इस मामले में सीएचएमओ से चर्चा की तो उन्होंने कहा दिया कि डॉ से कहे कि अभी भर्ती ले बाद में देखेंगे। कलेक्टर को मैसेज भेज मदद मांगी उन्होंने कोई रिस्पांस दिया नही। निजी अस्पताल के डॉ से चर्चा की तो उन्होंने अपनी पीड़ा बताई कि विकट स्थिति है, कोविड के डर से स्टाफ कोविड पेशेंट की देखरेख करने तैयार नही, बाहर से स्टाफ और डॉक्टर बुलाकर व्यवस्था बनाई गई वो मनमाना पैसा मांग रहे ऐसे में हम करे भी तो क्या करे।