जोहार छत्तीसगढ़-खरसिया।
अनुविभागीय अधिकारी (रा.) के पद पर पदस्थ गिरीष रामटेके के भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर खरसिया क्षेत्र के ग्रामीणों ने एसडीएम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और जनदर्शन में 9 बिंदुओं का शिकायत पत्र जिला कलेक्टर को देकर गिरीश रामटेके पर कार्यवाही की मांग की गयी है, पत्र की प्रतिलिपी मुख्यमंत्री, प्रभारी मंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री, छ.ग. शासन के मुख्य सचिव सहित डीजीपी को भी देकर कार्यवाही किये जाने का अनुरोध किया गया है। खरसिया नगर क्षेत्रांतर्गत पुरानी बस्ती, बोकरामुड़ा, ठाकुरदिया, मौहापाली, गंज पीछे, संजय नगर, खरसिया, बेलभांठा, तेलीकोट, महका, देहजरी के ग्रामीणों ने अपने दिये शिकायती पत्र में लिखा है कि गिरीश रामटेके के द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग में रायगढ़ जिले के चर्चित भू-माफि या को विधिविरूद्व करोड़ो की राशि का भुगतान कर शासन को करोड़ो रूपयों का चूना लगाया गया है, 170 ख के मामले को लटकाने, भाजपा के रसूखदारों को ग्रामीण अंचलों में फ्लाई ऐश गिराने के कार्यों का अनदेखा किये जाने से खरसिया क्षेत्र का पर्यावरण दूषित हो रहा है, एसडीएम द्वारा अपने चहेते लोागें को सांठ-गांठ कर बहुमूल्य नजूल भूमि को विधिविरूद्व बंदरबांट किया गया है, कोरोना काल में हजारों रूपये लेकर दुकानदारों को दुकान खोलने की अनुमति दी गयी, भूमि डायवर्सन के मामलों में रिश्वत लेकर कार्य किया जाता है जो नहीं मिलने पर प्रकरणों को बेवजह लंबित कर दिया जाता है, 151 के मामलों में रिश्वत लेकर जमानत दी जाती है और रिष्वत न मिलने पर जेल भेज दिया जाता है। ग्रामीणों ने सूबे के मुखिया भूपेश बघेल, प्रभारी मंत्री रविन्द्र चौबे, उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल, छ.ग. शासन के मुख्य सचिव, जिला कलेक्टर भीम सिंह सहित पुलिस महानिदेषक को शिकायत की प्रति देकर कहा है कि खरसिया एसड़ीएम ने अपने दो वर्ष के कार्यकाल में खरसिया तहसील को रायगढ़ जिले का सर्वाधिक भ्रश्टाचार, विधिविरूद्व कार्यों का गढ़ बना दिया गया है। खरसिया एसडीएम के विरूद्व भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत तथा विधिसम्मत दण्डात्मक कठोर कार्यवाही किये जाने की मांग क्षेत्रवासियों ने की है।
क्षेत्रवासियों में क्यों है इतना आक्रोश जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी संदेह के दायरे में
अनुविभाग के एक महत्वपूर्ण पद पर आसीन अधिकारी के विरूद्व क्षेत्र के ग्रामीणों में इतना आक्रोश क्यों है, यह सोचने वाली बात है। क्यों एक अधिकारी के विरूद्व ग्रामीणों को जिला कलेक्टर के साथ-साथ क्षेत्रीय विधायक, सूबे के मुखिया से गुहार लगानी पड़ी, मामला चाहे जो भी हो शासन प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि अगर किसी अधिकारी की कार्यशैली पर सवाल उठाया जा रहा है तो वरिष्ठ अधिकारी इस मामले को गंभीरता से ले और जांच कराकर क्षेत्रवासियों की समस्याओं का समाधान करे, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों चाहे वह पार्षद हो, अध्यक्ष हो, विधायक हो, मंत्री हो या फिर मुख्यमंत्री ही क्यों ना हो, उनका भी दायित्व है कि उनके क्षेत्र के निवासियों के मन मे किसी अधिकारी के प्रति इतना आक्रोश उत्पन्न न हो, क्योंकि तानाशाह अधिकारियों पर कार्यवाही न किये जाने से जनता में आक्रोश पैदा होता है, जिसका खामियाजा क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को उठाना पड़ता है क्योंकि अधिकारी तो तबादला कराकर चले जाते है, लेकिन जनता के प्रति जवाबदारी तो जनप्रतिनिधि की होती है, साथ ही जनप्रतिनिधियों की चुप्पी से शासन की योजनाओं का लाभ भी आम जनता को नहीं मिल पाता है, योजनाओं के क्रियान्वयन में ऐसे अधिकारी कुण्डली मारकर बैठे रहते है और उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता हे।