जाँजगीर चाँपा — आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। वर्ष की अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे ज्यादा है। इस पूर्णिमा को इतनी श्रेष्ठता प्राप्त है कि इस एकमात्र पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म में गुरूओं को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जिसमें हम अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिये कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते हैं। आज मनाया जाने वाला गुरूपूर्णिमा महोत्सव गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को दर्शाता है। खासकर विद्या अर्जन करने वाले लोगों के लिये आज का दिन काफी महत्वपूर्ण होता है। भारत ऋषि मुनियों का देश है जहाँ गुरू की उतनी ही पूजा होती है जितनी भगवान की।
इस दिन अपने गुरु की सेवा और भक्ति कर जीवन में सफल होने का आशीर्वाद जरूर प्राप्त करना चाहिये। गुरुओं को समर्पित यह पर्व हमारे देश में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। आज के दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि बिना गुरु के ईश्वर नहीं मिलता इसलिये जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है। सनातन धर्म में गुरु की महिमा का बखान अलग-अलग स्वरूपों में किया गया है। भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है।गुरूपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी का जन्मदिवस भी है। हिंदू धर्म में 18 पुराणों का जिक्र है, जिनके रचयिता भी महर्षि वेदव्यास ही हैं। इतना ही नहीं व्यास जी को वेदों का विभाजन करने का भी श्रेय प्राप्त हुआ है। सनातन परंपरा में गुरु को ईश्वर से भी ऊंँचा स्थान दिया गया है। इसमें गुरु का नाम ईश्वर से पहले आता है क्योंकि गुरु ही होता है जो आपको गोविंद से साक्षात्कार करवाता है, उसके मायने बतलाता है। जीवन में जिस तरह नदी को पार करने के लिये नाविक पर, गाड़ी में सफर करते समय चालक पर, ईलाज कराते समय डॉक्टर पर विश्वास करना पड़ता है, बिल्कुल उसी तरह जीवन को पार लगाने के लिये सद्गुरु की आवश्यकता होती है और उनके मिल जाने पर उन पर आजीवन विश्वास करना होता है। ऐसा इसीलिये क्योंकि गुरु की अग्नि भी शिष्य को जलाती नहीं है बल्कि उसे सही राह दिखाने का काम करती है। गुरू में ‘गु’ शब्द का वास्तविक अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का मतलब है निरोधक। अर्थात जो अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है उसे गुरु कहते हैं।ऐसा कहा जाता है कि गुरु अपने शिष्य के जीवन में फैले अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाते हैं। जबकि जीवन में सतमार्ग भी प्रशस्त करते हैं।
गुरु अपने शिष्यों को हर संकट से बचाने के लिये प्रेरणा देते रहते हैं इसलिये हमारे जीवन में गुरु का अत्यधिक महत्व है। अपनी अमृतवाणी में गुरु के महत्व को बताते हुये संत कबीरदास का एक दोहा बड़ा ही प्रसिद्ध है। जो इस प्रकार है –
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूंँ पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
इसके अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध श्लोक में गुरु को परमब्रह्म बताया गया है –
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
हिंदू धर्म में गुरु और ईश्वर दोनों को एक समान माना गया है। गुरु भगवान के समान है और भगवान ही गुरु हैं। गुरु ही ईश्वर को प्राप्त करने और इस संसार रूपी भवसागर से निकलने का रास्ता बताते हैं। गुरु के बताये मार्ग पर चलकर व्यक्ति शान्ति, आनंद और मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों और पुराणों में कहा गया कि अगर भक्त से भगवान नाराज हो जाते हैं तो गुरु ही आपकी रक्षा और उपाय बताते हैं।गुरूपूर्णिमा के बाद से चातुर्मास भी शुरू हो जाता है। इन चार माह में शिष्य अपने गुरु चरणों में उपस्थित रहकर शिव ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति की शिक्षा प्राप्त करते हैं।