धरमजयगढ़-जोहार छत्तीसगढ़।
हिन्दू धर्म में मूर्ति की पुजा होती है।वहीं पेड़ पौधे, नदी, पशु, भुमि, पत्थर, पहाड़ तथा प्रकृति की पुजा बड़े धुम धाम से विधान के साथ किया जाता है। हिन्दू महिलाओं के लिए वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पति पर आए संकट चले जाते हैं और आयु लंबी हो जाती है। और दाम्पत्य जीवन सुखद हो जाता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी। स्कंद’ और ‘भविष्योत्तर’ पुराण’ के अनुसार वट सावित्री का व्रत हिन्दू कैलेंडर की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि पर करने का विधान है. वहीं, ‘निर्णयामृत’ इत्यादि ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अमावस्या पर की जाती है,उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही किया जाता है।इस व्रत में वट का बहुत महत्व है,कहते हैं कि इसी पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने पति को यमराज से वापस पाया था,सावित्री को देवी का रूप माना जाता है,हिंदू पुराण में बरगद के पेड़े में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है, मान्यता के अनुसार ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में, विष्णु इसके तने में और शिव उपरी भाग में रहते हैं,यही वजह है कि यह माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।