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महुआ फूल और उससे बनने वाले अल्कोहल से सैनिटाइज हो रहा है छत्तीसगढ़ का वनांचल … महुआ पेड़ एक, उपयोग अनेक … पेड़ के टहनी को साक्षी मानकर होती है वैवाहिक रस्म …

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टीकाराम पटेल की  कलम से
 धरमजयगढ़-जोहार छत्तीसगढ़।  इन दिनों पूरा विश्व कोविड-19, कोरोनावायरस के चपेट में है और इसे वैश्विक महामारी घोषित किया गया है। अब तक पूरे विश्व में इससे मरने वालों की संख्या लगभग अस्सी हजार के करीब पहुंच चुकी है। वहीं इससे संक्रमित लोगों की संख्या कई लाखों में है। विश्व के सभी देशों में इससे बचने के उपाय का खोजे जा रहे हैं लेकिन आज तक इससे बचने का कोई उपाय नहीं मिला है। वहीं भारत में कुछ ऐसे संक्रमित मरीजों  के ठीक होने की खबर  अच्छा संदेश दे रहा है। यह वायरस पूरे विश्व में जिस गति से फैला है और अमेरिका सहित यूरोपीय देशों को अपनी चपेट में लिया है उससे भारत के लिए एक अच्छा खबर है कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाली देश में जिस गति से फैलना चाहिए उस गति से नहीं फैल रहा है। भारत में इस वायरस का ज्यादा असर नहीं होने के कई कारण है। सबसे पहले प्रधानमंत्री द्वारा त्वरित निर्णय लिया जाना और लाकडाउन सही समय में करना। ऐसे ही भारत के कई प्रांतों में भी इसका असर बहुत कम है। जिसमें छत्तीसगढ़ बहुत बड़ा भाग्यशाली है जहां इसके संक्रमित दस लोग पाए गए थे लेकिन 11 में से 9 ठीक हो चुके हैं। इससे बचाव के लिए बार-बार हाथ को साबुन से धोने, मास्क एवं सैनिटाइज का उपयोग करने की बात कही जा रही है। बाजार में जो सैनिटाइजर उपलब्ध है उसमें बताया गया है कि सत्तर से अस्सी प्रतिशत अल्कोहल की मात्रा है। छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड जैसे कई राज्यों में बहुतायत मात्रा में  महुआ फूल मिलता है। और इस महुआ फुल को संग्राहक संग्रह कर खुले बाजार में बेचते हैं और इससे अल्कोहल बनाया जाता है। इन दिनों लॉक डाउन के वजह से अंग्रेजी शराब दुकानें बंद है और गांव-गांव में वनांचलों में भारी मात्रा में महुआ शराब का निर्माण किया जा रहा है। जो कि महुआ फुल से बनता है एक तरह से इस अल्कोहल से गांव-गांव सैनिटाइज भी हो रहे हैं। यह महुआ का पेड़ जंगलों में भी बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। कई महुआ पेड़ ऐसे-ऐसे जगह में जगहों में होते हैं जहां कोई महुआ फूल उठाने ही नहीं जाता। इसी महुआ फूल में अल्कोहल की मात्रा होती है जो कि पूरे क्षेत्र को सुगंधित करता है जिससे पूरे क्षेत्र सेनीटाइज हो रहा है। अमूमन यह महुआ फूल फरवरी के आखिरी और मार्च के शुरुआत से ही गिरना प्रारंभ हो जाता है। लेकिन मौसम की खराबी की वजह से इस वर्ष  यह अप्रैल में ही गिरना प्रारंभ हुआ है। यह भी कोरोनावायरस के खतरे से बचने का ईश्वरीय वरदान साबित हो रहा है। वैसे भी महुआ इंसानों के लिए हमेशा से ही वरदान साबित हुआ है। गरीबी और भुखमरी की स्थिति में इसे वनांचल में पकाकर भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। वही भूनकर भी नाश्ता आदि के रूप में ग्रहण किया जाता है। महुआ का फल जिसे डोरी कहते हैं  उससे तेल निकाला जाता है जो खाने और शरीर में लगाने के लिए उत्तम माना गया है। तेल जब निकालते हैं तो उससे जो खली निकलता है खली भी बहुत महत्वपूर्ण है। खली को जलाकर  मच्छर भगाया जाता है वही उसका और भी कई उपयोग है। इसी महुआ से अल्कोहल भी बनाया जाता है जिसे लोग शराब के रुप में सेवन करते हैं। हिंदू सनातन धर्म में विवाह की पवित्र रस्म भी इसके टहनी को साक्षी मानकर किया जाता है और इसी महुआ पेड़ से बने हुए पीढ़ा में बैठाकर विवाह की सभी रस्म अदा किया जाता है।

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