- जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़। उदयपुर के नाम से जाना जाने वाला रियासत जो अब तात्कालिन राजा धर्मजीत सिंह के नाम से धरमजयगढ़ कहलाता है। यहां दशहरा सहित सभी त्योहार हर्षोल्लास के साथ अपने प्रजा के साथ बिना भेदभाव के मनाया जाता था। दशहरा के दिन तात्कालिन राजा हाथी में सवार होकर राजमहल से निकलते थे और रावण दहन करते थे। इसी तरह यहां दीपावली शुभ अवसर पर राजमहल में महल के अंदर और बाहर यहां तक की पुरे कैम्पस में सैकड़ों जुए के फड़ सजते थे। दीपावली में जुआ खेलना इसका मुख्य कारण वर्षभर के भाग्य की परीक्षा करना है। इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। हालांकि यह एक दुर्गुण ही है किन्तु कुछ लोग भगवान शंकर और पार्वतीजी द्वारा द्यूत क्रीड़ा का खेला जाना शास्त्र सम्मत मान लेते हैं। उनकी दृष्टि में यह शास्त्रानुसार है। अफसोस है कि लोग शास्त्रों में बताए गए सद्कर्मों संबंधी निर्देशों का पालन नहीं करते और दुर्गुण को तुरंत अपना लेते हैं। धरमजयगढ़ में यह परंपरा रियासत काल से चल रहा था। लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद तात्कालिक सरकार ने इस रियासत कालीन परंपरा पर रोक लगा दी।कथा है कि दिपावली के दिन भगवान शिव और पार्वती ने भी जुआ खेला था, तभी से ये प्रथा दिवाली के साथ जुड़ गई है। हालांकि शिव व पार्वती द्वारा दिवाली पर जुआ खेलने का ठोस तथ्य किसी ग्रंथ में नहीं मिलता। जुआ एक ऐसा खेल है जिससे इंसान तो क्या भगवान को भी कई बार मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। जुआ, सामाजिक बुराई होकर भी भारतीय मानस में गहरी पैठ बनाए हुए है। ताश के पत्तों से पैसों की बाजी लगाकर खेला जाने वाला खेल भारत में नया नहीं है। बस हर काल में इसके तरीकों में थोड़ा परिवर्तन आता रहा है। धरमजयगढ़ पैलेस में होने वाले जुआ के कई स्तर होते थे। उच्च वर्ग का पैलेस के अंदर उसके बाद मध्यम वर्ग पैलेस के बाहर बरामदे में बाकी कैम्पस में।इन्हे सारी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती थी और बदले में खेलने वालों से खर्चा लिया जाता था। राजा के संरक्षण में भी कई वर्षों तक यह परंपरा चलते रहा।यहां ताश के पत्तों से जुआ खेला जाता था। कई प्रदेशों में दीपावली की रात घरों में जुआ खेला जाता है। इसे कई लोग शुभ और लक्ष्मी के आगमन का संकेत मानते हैं। दीपावली के दिन पिता,पुत्र को रूपए देकर सांकेतिक जुआ खेलने भेजते हैं। लेकिन धर्मग्रंथों ने सीधी घोषणा की है कि जुआ एक व्यसन है, जहां व्यसन होते है वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता। यह सब जानते हुए भी राजमहल में राजा के संरक्षण में होने वाले जुआ में दुर दुर से लोग जुआ खेलने आते थे। क्योंकि यहां पुलिस प्रशासन द्वारा उस समय पकड़ धकड़ नहीं किया जाता था।
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