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लेमरू हाथी संरक्षित क्षेत्र घोषित, कहीं कहीं विरोध प्रारंभ … गांव खाली कराने जैसी कोई बात नहीं-डीएफओ

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narayan bain12:13 AM (0 minutes ago)
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  • जोहार छत्तीसगढ़ -धरमजयगढ़:–  रायगढ़ सहित सरगुजा एवं कोरबा जिला पिछले बीस वर्षों से हाथियों की समस्या से जूझ रहा है। हाथियों के मरने और लोगों को मारने का कार्य निरंतर जारी है।अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है वहीं दर्जनों हाथी भी बेमौत मर चुके हैं। लाखों का फसल बर्बाद हो चुका है।इन सब को देखते हुए समय समय पर हाथी कारिडोर का मांग किया जाता रहा है। यह बात समझ से परे है जब हाथी संरक्षित क्षेत्र नहीं बन रहा था तो रोज चिल्ला रहे थे कि क्यो नही बना रहे हैं और अब बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई तो विरोध शुरू। पिछले 15 साल में बहुत से ग्रामीण जंगली हाथियों के कुचलने से बेमौत मारे गए हैं और सैकड़ों एकड़ भूमि पर फ़सल का नुक़सान हुआ है साथ ही जंगली हाथियों को भी नुकसान हुआ है। इस पूरे क्षेत्र में मानव हांथी द्वंद्व विकराल रूप धारण कर लिया है और मांग उठाई जाने लगी कि इस समस्या का एकमात्र उपाय/समाधान है हांथी संरक्षित क्षेत्र यानी एलिफेंट कारिडोर और अब जब इस दिशा में काम आगे बढ़ने लगा तो बिना सोचे समझे विरोध प्रारंभ हो गया। विरोध करना चाहिए लेकिन कुछ तथ्यों पर। हमारे गांव के ग्रामीण इलाकों में यह बहुत बड़ी समस्या है जिसका समाधान बस यही है जिसके समाधान के लिए वन्य जीव विशेषज्ञ लगे हुए हैं। लेकिन कुछ लोग इस समस्या को अपने रोजगार का साधन बना कर रोटियां सेंकने में लगे है ।जंगली हाथियों के उत्पातों से लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है मानव हांथी द्वंद्व विकराल रूप धारण कर लिया है कृषकों की फसलों को जंगली हाथियों द्वारा नुकसान पहुंचाया जा रहा है लोग बेमौत इन जंगली हाथियों के कुचलने से मर रहे हैं। साथ ही जंगली हाथियों की अप्राकृतिक मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है और तब चारों ओर से इस समस्या के समाधान हेतु एक ही मांग की जा रही है वह है हांथी संरक्षित क्षेत्र यानी एलिफेंट कारिडोर कब तक बनेगा यही इस समस्या का एकमात्र समाधान है, और जब यह संरक्षित क्षेत्र मूर्त रूप धारण करने की दिशा में है तो विरोध शुरू। विरोध जरूर करें लेकिन तथ्यों पर आधारित हो। छत्तीसगढ़ सरकार ने लेमरू रिजर्व को लेकर कोई भी जानकारी सार्वजनिक नही की है। रिजर्व क्षेत्र का नक्शा, कितने गांव के कितने परिवार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभावित होंगे , क्या कोई विस्थापन भी शामिल है आदि। इन बातों का खुलासा किये बिना इस प्रक्रिया से ग्रामीणों में शंका और भय की स्थिति पैदा होना स्वाभाविक है जिसका समाधान अधिकािरयों को किया जाना चाहिए। प्रभावित गांवों के लोग इस संबंध में जानकारी प्राप्त करें ताकि उनकी समस्या का समाधान हो। हांथी संरक्षित क्षेत्र की कार्ययोजना विशेषज्ञों ने तैयार किया है हाथियों के उत्पातों से जहां ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को नींद नहीं आती वहीं यह समस्या कुछ लोगों के लिए रोजगार बन गया है ऐसे लोग वे जो रोज ज्ञान बांटने में लगे हैं और अपनी रोजी-रोटी चला रहे है जो ना वन्य जीव विशेषज्ञ है और न ही उन्होंने वन्य जीव पर अध्ययन किया है। इस परियोजना के विरोध में कंपनियों का भी अप्रत्यक्ष रूप से सहभागिता है क्योंकि बहुत से कोल ब्लॉक इस संरक्षित क्षेत्र के जद में आ गए हैं जिनका आबंटन अब नहीं होगा जिससे कंपनियों का कोल ब्लाक लेने का सपना पूरा नहीं हो सकता इसलिए कंपनियों द्वारा भी अपने दलालों को भेजकर गांव की जनता को विरोध करने के लिए ब्रेनवाश किया जा रहा है।*गांव खाली कराने जैसी कोई बात नहीं
  • इस संबंध में वनमंडलाधिरी प्रियंका पांडेय ने कहा कि धरमजयगढ़ वनमंडल के दो वन परिक्षेत्र प्रभावित होंगे। वन परिक्षेत्र बोरो और कापू का क्षेत्र इसमें आयेगा। पांडेय ने कहा कि गांव खाली कराने जैसी कोई बात ही नहीं है यह केवल अफवाह मात्र है। उन्होंने ने उदाहरण देते हुए बताया कि अचानकमार टाइगर रिजर्व है उसके अंदर अब भी पच्चीस गांव हैं। उन्होंने कहा कि यह शासन की महत्त्वाकांक्षी योजना है और इसके लिए किसी प्रकार की अनापत्ति प्रमाणपत्र की आवश्यकता ही नहीं है।

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