जोहार छत्तीसगढ़-बेमेतरा।
लोक आस्था का महापर्व छठ आज अपने तीसरे दिन पर है। इस पावन पर्व के अवसर पर श्रद्धालु आज संध्या काल में डूबते सूर्य को अघ्र्य देंगे। नहाए-खाए और खरना की रस्म के बाद तीसरे दिन की यह पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन अस्ताचल सूर्य को अघ्र्य देने का विशेष महत्व है, जिसे छठ व्रत का सबसे कठिन और पुण्यदायी कार्य माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस संध्या अघ्र्य से संतान की रक्षा, संतान प्राप्ति और परिवार की सुख-समृद्धि का वरदान मिलता है।
नहाए-खाए और खरना की पवित्रता
छठ पर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत नहाए-खाए से होती है, जिसमें व्रती गंगाजल या किसी पवित्र जल में स्नान कर अपनी शुद्धि करते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन खरना की रस्म होती है, जिसमें व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर शाम को खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना की यह पूजा व्रतियों के लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि इसके बाद का उपवास अगले 36 घंटे तक निर्जला रहता है। यह कठिन तपस्या व्रतियों की भक्ति और आस्था को दर्शाती है।
संध्या अघ्र्य का महत्व
छठ महापर्व के तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण संध्या अघ्र्य होता है। इस दिन व्रती जल में खड़े होकर सूर्यदेव को संध्या का अघ्र्य अर्पित करते हैं। मान्यता है कि सूर्यदेव और छठी मैया को अघ्र्य देने से व्रतियों के घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। साथ ही, यह अघ्र्य संतान की दीर्घायु और रक्षा का प्रतीक माना जाता है। कई परिवारों में संतान प्राप्ति की कामना से भी इस महापर्व का पालन किया जाता है।
संध्या अघ्र्य का शुभ मुहूर्त
संध्या अघ्र्य का शुभ समय आज शाम लगभग 5:30 बजे से लेकर सूर्यास्त तक रहेगा। इसी समय पर व्रती जल में उतरकर अघ्र्य प्रदान करेंगे और सूर्यदेव से अपने परिवार और संतान की सुख-समृद्धि की कामना करेंगे। संध्या अघ्र्य का यह समय अत्यंत पावन माना जाता है और इसे श्रद्धा भाव से करना आवश्यक होता है।
संध्या अघ्र्य की विधि
संध्या अघ्र्य के समय व्रती पहले सूर्यदेव और छठी मैया का आह्वान करते हैं। बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना, सूप और दीपक रखकर श्रद्धालु तालाब, नदी या किसी जलाशय के किनारे एकत्र होते हैं। व्रती जल में खड़े होकर डूबते सूर्य को दूध और जल से अघ्र्य देते हैं। इस समय मंत्रोच्चार के साथ सूर्यदेव की पूजा की जाती है और उनसे आशीर्वाद की कामना की जाती है।
छठी मैया से विशेष आशीर्वाद
छठ महापर्व में सूर्यदेव के साथ छठी मैया की भी पूजा होती है, जिन्हें संतान की रक्षा और खुशहाली का देवी माना जाता है। व्रती छठी मैया से परिवार में सुख-शांति और बच्चों की दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा करते हैं। छठ महापर्व के चौथे दिन उगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ इस व्रत का समापन होता है। इस अद्वितीय पर्व में आस्था, कठिन तप और परिवार की भलाई की कामना का जो समन्वय देखने को मिलता है, वह इसे भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण पर्वों में शामिल करता है।