संजीव वर्मा
देश में लोकसभा चुनाव सर पर है और कांग्रेस को झटके पर झटके लग रहे हैं। मजेदार बात है कि देश के राजनीतिक फलक को कांग्रेस मुक्त करने की बात करने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अब भाजपा को कांग्रेस युक्त करते जा रहे हैं। राजनीतिक रूप से भाजपा उसे लगातार बैकफुट पर धकेलने में लगी हुई है, तो ईडी आईटी जैसी सरकारी मशनरियां भी पीछे नहीं है। इन सबके बीच सर्वोच्च अदालत में उसे बड़ी राहत मिली है। आयकर विभाग ने उच्चतम न्यायालय में कहा है कि वह 3500 करोड़ रुपए की कर मांग नोटिस के संबंध में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। न्यायमूर्ति बीवी नगरत्ना और न्यायमूर्ति आगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने आयकर विभाग का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का यह बयान दर्ज किया कि मामले पर अंतिम फैसला आने तक मौजूदा परिस्थितियों में तुरंत कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। पीठ ने कर मांग नोटिस पर कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई को जुलाई के लिए स्थगित कर दिया। इस मामले को लेकर अदालत में कांग्रेस की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता और पार्टी के राज्यसभा सांसद विवेक तनखा ने कहा कि मैं हर वक्त कहता हूं कि आखिरकार सत्य की जीत होती है। कांग्रेस को उच्चतम न्यायालय में जो राहत मिली है, वह इस बात का प्रमाण है। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने पार्टी को झटका दिया था। अदालत ने टैक्स अधिकारी की ओर से उनके खिलाफ 4 साल की अवधि के लिए टैक्स मूल्यांकन प्रोसिडिंग शुरू करने की चुनौती देने वाली कांग्रेस की याचिकाओं को खारिज कर दिया था। वहीं, कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को आर्थिक रूप से पंगु बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस को राहत मिली है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उसकी राजनीतिक चुनौतियां कम हो गई हैं, बल्कि इसके इतर उसे अभी राजनीतिक रूप से और अधिक कठिनतम चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उनके नेता एक-एक कर भाजपा रूपी जहाज की सवारी कर रहे हैं। देश के हर राज्यों के छोटे-बड़े नेता ऐसे पलायन कर रहे हैं मानो कांग्रेस अब डूबता जहाज है। पार्टी को इससे पार पाना होगा। भाजपा भी ऐसे नेताओं को हाथों हाथ ले रही है और उन पर भरोसा भी जता रही है। पार्टी ने तेलंगाना में तो दूसरी पार्टी से आए 9 नेताओं को टिकट दिया है। आंध्र प्रदेश में पार्टी के हिस्से आई चार सीटों में से तीन सीटों पर तीन अलग-अलग दलों से आए नेताओं को तवज्जो दी गई है। हरियाणा और पंजाब में भी तीन-तीन सीटें कांग्रेस और अन्य दलों से पाला बदलकर आए नेताओं को दी गई है। इनमें नवीन जिंदल भी शामिल हैं। जिंदल को तो पार्टी ज्वाइन करने के आधा घंटे के अंदर ही टिकट से नवाज दिया गया। इसके अलावा भाजपा ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों में भी दलबदलुओं के लिए दिल बड़ा किया है। छत्तीसगढ़ में भी दलबदल कर आए चिंतामणि महाराज को सरगुजा से प्रत्याशी बनाया गया है। जबकि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा से आई सीता सोरेन, राजस्थान में कांग्रेस से आई ज्योति मिर्धा, मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रहे कृपाशंकर सिंह और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से ही आए जितिन प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है। साथ ही ओडिशा और पंजाब में भी भाजपा ने ऐसे ही नेताओं पर दांव खेला है। अब सवाल यह है कि क्या भाजपा को ऐसे नेताओं से लाभ होगा, क्या जनता ऐसे दलबदल करने वाले नेताओं पर विश्वास जताएगी। इसका उत्तर तो चुनाव परिणाम के बाद ही मिलेगा। लेकिन भाजपा ने कांग्रेस को निशाना बनाकर उनके बड़े नेताओं को तोडऩे में जरुर सफ लता हासिल कर ली है। जहां तक दक्षिण भारत का सवाल है तो वहां भाजपा को अपनी जमीन तैयार करने के लिए ऐसे नेताओं की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन, हिंदी भाषी राज्यों में यह नीति कितनी कारगर होगी। यह देखना होगा, दरअसल भाजपा की नीति उन राज्यों में अपनी पहुंच बनाने की है जहां वह तीसरे और चौथे नंबर पर है। बीते चुनाव में उसने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में इसी तरह के प्रयोग कर कांग्रेस को पीछे ढकेल दूसरे नंबर की बड़ी पार्टी की हैसियत पा ली थी। अब उसकी निगाह तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों पर है। बहरहाल, जनता इसे किस रूप में लेगी यह देखना दिलचस्प होगा। कहते हैं राजनीति में साम दाम,दंड सभी भेद अपनाए जाते हैं। भाजपा भी यही कर रही है। अब यह बाद में पता चलेगा कि वह इसमें कामयाब होती है या नहीं, क्योंकि यह जनता है और जनता सब जानती है और उसके मन में क्या है यह तो 4 जून 2024 को ही पता चल सकेगा।