जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़।
धरमजयगढ़ क्षेत्र में विकास के नाम पर खुलकर कंपनी वाले नंगा नाच रहे हैं? और क्षेत्र के जनप्रतिनिधि चुप चाप बैंठ कर तमाशा देख रहे हैं। क्षेत्रिय विधायक आदिवासी होने के बाद भी क्षेत्र के आदिवासी छले जा रहे हैं। धरमजयगढ़ क्षेत्र में कई कंपनी इन दिनों काम कर रहे हैं लेकिन कंपनी वालों ने अपनी दादागिरी दिखाते हुए नियम विरूद्ध काम कर रहे हैं। आज हम बात कर रहे हैं धरमजयगढ़ क्षेत्र के भालूपखना गांव का, यहां धनवादा कंपनी द्वारा जल विद्युत परियोजना का काम शुरू किया गया है। कंपनी वोलों द्वारा कई किसानों के जमीन पर जबदस्ती अवैध कब्जाकर मलवा डाल दिया जा रहा है, वहीं कुछ किसानों के खेत में लगे फसला को भी जेसीबी मशीन से चौपट कर दिया जा रहा है और जब जमीन मालिक इसका विरोध करते हैं तो कंपनी के लोगों द्वारा गाली-गलौज करते हुए कहते हैं कि तु क्या कर लेगा बूढ़े तेरे को जो करना है तु कर, हम तो अपना काम करेंगे, अब ये गरीब आदिवासी जिसकी उम्र लगभग 100 साल का बुर्जुग क्या करेंगे, बेचारा चुपचाप अपनी जमीन पर लगे फसल को बर्बाद होता देख आंसू बहा रहे हैं। विडंबना देखिए कि हमारे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाला विधायक भी आदिवासी वर्ग के हैं इसके बाद भी क्षेत्र के अदिवासी छले जा रहे हैं, आखिर विधायक को क्या मजबूरी है कि ठगे जा रहे किसानों के साथ खड़े न होकर कंपनी वालों के साथ खड़े हैं।
गरीब किसान शिकायत करें तो करें किससे
धरमजयगढ़ क्षेत्र में कंपनी वालों द्वारा कई प्रकार की घपला बाजी किया गया है, निर्माण के नाम पर शासन के नियम की धज्जियां भी उड़ाई जा रही है लेकिन जनप्रतिनिधियों से लेकर शासन-प्रशासन तक गरीब आदिवासी का साथ नहीं दे रहे हंै जिसका नतीजा है कि आज क्षेत्र के गरीब आदिवासी किसान छले जा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि हम किसके पास शिकायत करें हमारे शिकायत पर किसी प्रकार की कोई जांच तक नहीं करते हैं। ग्राम पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधि भी कुछ पैसों के खातिर कंपनी वालों के तलवे चांटने को मजबूर हो जाते हैं? धनवादा कंपनी ने भालूपखना गांव के किसान बिरबल के खेत में लगे धान की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है, 100 साल का बुजूर्ग का साथ गांव के कोई भी नहीं दिया। जनप्रतिनिधि तो मानों कंपनी के दलाल बनकर काम कर रहे हैं जब हमारे द्वारा सरपंच पति से बात किया गया तो सरपंच पति इस विषय पर कुछ भी बोलने से साफ इंकर कर दिया। इससे तो पता चलता है कि जनप्रतिनिधि गांव वालों के साथ नहीं कंपनी वालों के साथ खड़े है।