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विधायक सिंह के पट्टा सरकार को वापस कर देने मात्र से ही विवाद नहीं थमेगा, कार्यवाही नहीं होते तक जिज्ञाशा रहेगा

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जोहार छतीसगढ़-पत्थलगांव।
पत्थलगांव विधायक रामपुकार सिंह के नाम मात्र से जहां आम जन मानस में सीधे साधे छवि उभर कर आती थी वह आज पुरे प्रदेश में छलावा और सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। जिसमें बगैर काबिज होने के बावजूद वन अधिकार पट्टा मिलने के बाद उपजे विवाद ने पत्थलगांव की राजनीति का पारा बढ़ा दिया है। विपक्ष ने इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरना शुरू करते ही विधायक रामपुकार सिंह ने वन अधिकार पट्टा सरकार को वापस करने का शपथ पत्र दे दिया।अब इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है की आखिरकार यह वन अधिकार पट्टा विधिवत तरीके से रामपुकार को आबंटित किया गया था तो फि र फर्जीवाड़ा कर वन अधिकार पट्टा लेने का विवाद गहराते ही प्रदेश के सबसे वरिष्ठ विधायक रामपुकार सिंह को इस पट्टे को वापस क्यों करना पड़ा, सिर्फ वन अधिकार पट्टा को वापस कर देने भर से इस फर्जीवाड़ा वन अधिकार पट्टा का विवाद थम नहीं सकता जबकि विधायक द्वारा वन अधिकार पट्टा वापस क र देना ही इस खेल में फर्जी काम होने को प्रमाणित कर दिया है यदि वे सही रहते तो उनको वैधानिक तौर पर शासन से मिले वन अधिकार पट्टा पर जब से फर्जीवाड़ा का विवाद शुरू हुवा अपने आप को सही साबित करते हुवे वन अधिकार पट्टा वितरण से सम्बन्धित समस्त वैध कागजात को सामने लाकर फर्जी वन अधिकार पट्टा को लेकर मुखर हो रहे विपक्ष के मुह पर करारा जवाब मारना था परन्तु उन्होंने एसा न कर अपने आप को फ र्जी वन अधिकार पट्टा दोषमुक्त करने के बजाय इस मामले में अपनी भूमिका को लेकर संदेह पैदा कर दिया हैं। अब जिस तरह विधायक रामपुकार सिंह ने वन अधिकार पट्टा सरकार को वापस करने का शपथ पत्र दिया उसके बाद कांग्रेसियों में उन्हें क्षेत्र का मशीहा बनाने और दिखाने की होड़ सी मच गई है उनके समर्थक उनके पक्ष में उनके द्वारा निजी भूमि से कुछ डिसमिल प्रजापति ब्रम्हकुमारी संस्था को दान में देने और पत्थलगांव में कई व्यवसायियों को बगेर रजिस्ट्री के बसाने का हवाला देने का मिशाल दे रहे है । देना भी चाहिए क्योंकि ये सब उनकी निजी भूमि थी इस पर उनका कब्जा तो क्या उनका ही हक है वे चाहे तो रखे या फि र किसी को भी दान दे लेकिन यहा बात छोटे बड़े झाड़ जंगल भूमि की हो रही जहा उनका कब्जा ही नहीं था आरोप है की फर्जी तौर पर अपने चहेते ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष, पंचायत के सरपंच, उपसरपंच और जिम्मेदार अधिकारियों की शह पर वन अधिकार पट्टा अपने नाम पर आबंटित करवा लिया गया। यही वजह है की वन अधिकार पट्टा को शासन को वापस देने का एलान के बावजूद यह विवाद थमने की बजाए और गहराती नजर आ रही है ,पालीडीह पंचायत में पहली बार ग्रामीणों का भारी विरोध देखने को मिल रहा है। ग्रामीणों ने इस मुद्दे को लेकर पंचायत के प्रतिनिधियों को घेरना शुरू कर दिया है उनका कहना है आज से पूर्व पंचायत कार्यकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ है जिसमें कोई भी गुप चुप तरीके से ग्राम प्रस्ताव तैयार किया गया हो और ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई हो,ग्रामीणों के एकजुट होकर वन अधिकार पट्टा को निरस्त करने की मांग करते हुए पंचायत सभा पंजी में हस्ताक्षर प्रस्ताव में विरोध के सामने पंचायत झुकती नजर आई और आखिरकार पालीडीह पंचायत के अंतग्र्रत समस्त जारी वन अधिकार पट्टा को निरस्त करने का फैसला किया गया है।
यह कार्यकाल इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जायेगा
पत्थलगांव विधायक रामपुकार सिंह का वर्तमान कार्यकाल इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जायेगा जिसमे सबसे प्रमुख पालीडीह पंचायत में बगेर कब्जे के जारी वन अधिकार पट्टा को निरस्त करने का मामला समेत उनके चहेते अध्यक्ष द्वारा अन्य पंचायत में वन अधिकार पट्टा लेने का मामला प्रमुख रहेगा। इस कार्यकाल में यह भी स्पष्ट अंकित रहेगा की तमाम विरोध के बावजूद फ र्जीवाड़ा कर वन अधिकार पट्टा जारी करने वाले जिम्मेदार पंचायत प्रतिनिधि,जिम्मेदार अधिकारी और जिम्मेदार चापलूस कार्यकर्ता पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने के बजाय उन्हें उपहारों से उपकृत किया गया।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उपज रहा असंतोष
एक तरफ रामपुकार सिंह द्वारा वन अधिकार पट्टा सरकार को वापस करने का शपथ पत्र देते ही विपक्ष द्वारा ब्लाक कांग्रेस और नेता को भी मिले वन अधिकार पट्टा को सरकार को वापस करने का मुद्दा उठाया जा रहा है वही दूसरी तरफ कांग्रेस में भी इस मामले को लेकर कम हलचल नहीं है वहीं भीतर से यह बात भी निकलकर आ रहे हैं ब्लाक कांग्रेस पत्थलगांव के सोशल मिडिया ग्रुप में कांग्रेस के कार्यकर्ता इस मामले में ब्लाक कुछ नामचीन नेता के इस्तीफ ा तक की माग करते हुवे गौ पालन के नाम पर पट्टा लेने का आरोप लगाते नजर आ रहे है उनका कहना है की जिस तरह विधायक ने वन अधिकार पट्टा सरकार को वापस कर एक नाजिर पेश की है उसी तरह अन्य नेताओं को भी पहल करनी चाहिए बहरहाल वन अधिकार पट्टा सरकार को वापस कर देने मात्र से ही यह विवाद कम नहीं होता नजर आ रहा है। इस मामले में जब तक जिम्मेदार ग्राम जांच अधिकारी और इस मामले जुड़े उच्च अधिकारी पंचायत प्रतिनिधि पर जांच नहीं बैठ जाती पुरे मामले की सच्चाई आम जन मानस के सामने नहीं आ जाती तब तक सवाल युही उठते रहंगे और दोषियों को चुभते रहेंगे।

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