जोहार छत्तीसगढ़ -बेमेतरा।
एक तरफ छत्तीसगढ़ मे मानसून आने के बाद सभी किसान धान की बुआई के लिए अपना ट्रेक्टर लेकर खेत में पहुंचने लगे है। तो दूसरी तरफ पानी के बूंदा बांदी के बीच भिगने का परवाह न करते हुए भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष डॉक्टर जगजीवन खरे ने पारम्परिक हल बैल से खेती की शुरुआत की है।
डॉक्टर जगजीवन खरे ने बताया की कृषि उपकरण ट्रैक्टर आदि के युग में भी क्षेत्र के छोटे किसान ट्रैक्टर के बजाय पारंपरिक हल-बैल के माध्यम से ही खेतों की जुताई करना बेहतर समझते है। विशेषकर 1970-80 के दशक में मवेशियों की संख्या अधिक हुआ करती थी। पारंपरिक खेती का प्रचलन भी चरम पर था। परंतु अब पशुओं खासकर बैल की संख्या में भारी गिरावट आई है। इससे पारंपरिक खेती करने में किसानों को भारी परेशानी हो रही है। खेती किसानी में तकनीक का प्रयोग बढ़ गया है फिर भी ग्राम गोपालपुर में किसान आज भी पारंपरिक खेती को अधिक तरजीह देते हैं। धान की रोपाई के लिए हल बैल से खेती करते हुए पारंपरिक प्रचलन को कायम रखे हुए है।
हल और बैल से खेती से कई फायदे
अब कहीं-कहीं ही किसी किसान के पास कुछ जुड़े बैल रह गए हैं। जिसके कारण अभी भी पशुओं के गले में घंटी की आवाज अब बहुत कम सुनाई पड़ती है, लेकिन कई किसान आज भी खेती में हल-बैल का प्रयोग कर रहे हैं। गांव के दूसरे किसान भी बताते है कि हल बैल से खेती करने का अलग ही आनंद है। पारंपरिक हल बैल से जमीन की जुताई अच्छी होती है। जुताई से जमीन अनुरूप समतल होता है और फसल लगने के बाद सिचाई करने में परेशानी नहीं होती है। बैल से हेंगाई किए जाने से खेत अधिक समतल रहता है और पानी का ज्यादा दिनों तक ठहराव बना रहता है ।