जोहार छत्तीसगढ़-पत्थलगांव।
पत्थलगांव के पालीडीह में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्यौहार पदमा एकादशी कर्मा उत्सव मनाया गया। जिसमें प्रकृति के उपासना भाई बहन के स्नेह का साक्षी कर्मा त्योहार को माना जाता है इस दिन अन्न धन्य धान संपन्न सुखी उत्तम बृष्टि प्रकृति के सुंदरा धरती को हरा भरा कर सुशोभित रहने आज के दिन बच्चे बूढ़े महिलाएं पुरुष तथा कुंवारी कन्याएं भादो मास के शुक्ल पक्ष में उपवास रखते है। जिसमें पुरा गांव एक होकर गांव के बैगा के घर के आंगन में आरती थाली दिया संजो कर करमराजा के कथा सुनने के बाद उपवास खोलते हैं। ऐसा माना जाता है की बहनें जिनके भाई नहीं होते वे खीरा पान फूल लेकर खीरा के फल को भाई स्वरूप मान कर कर्मा डार के नीचे बैठ कर जाई दीपक प्रज्वलित कर एकादशी कथा सुनाते है। और बहनें इस व्रत को भाई बहन के स्नेह का प्रतीक मानकर करम राजा के उपवास कर अपने-अपने भाईयों के लिए दीर्घाआयु की कामना करते हैं। जिनके भाई नहीं होते वे बहनें भाई प्राप्ति के लिए कर्मा डार के नीचे भगवान से भाई के लिए प्रार्थना करते है। ऐसा माना जाता है ये उपवास कुंवारी कन्या के करने से जिनके भाई नहीं होते हैं उनके घर भाई के प्राप्ति होते हैं। वहीं बच्चे बूढ़े सायन मिलकर मदार के साथ रातभर कर्मा डार को हाथों में लेकर करम राजा को प्रसन्न करने के लिए महिला पुरुष रात भर जागरण कर कर्मा का गाना गाकर मदार के थाप के साथ नाचते गाते झूमते हैं। ये पर्व निश्चित ही भागमभाग दिनचर्या के लिए सुखद अहसास कहा जा सकता जहां एक ही घर परिवार के लोग एकसाथ होकर भी एक साथ मिल बैठ नहीं पाते वहीं इस पर्व से पुरा गांव एक होकर घर में बैठकर आपस मे मिलते हैं इसीलिए हम सब को अपने पारंपरिक त्यौहार सभ्यता संस्कृति को भूलना नहीं चहिए चाहे हम कितने ही मॉर्डन बन जाएं परए जो हमारे बुजुर्गों ने रीति रिवाज बनाएं है उसे बनाए रखना हम सभी लोगों धर्म करम हैं और ऐसा करने से निश्चित ही गांव ग्राम में आपसी सामंजस्य भाईचारा को बरकार रखा जा सकता इसलिए हमारी छत्तीसगढ़ी त्यौहार का एक अलग ही पहचान और और गरिमा हैं क्योंकि ये हमे साथ मिलकर रहना सिखाती हैं।