वॉशिंगटन । अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद अमेरिकी सेना को अचानक वापस बुलाने पर एक तरफ जहां अमेरिका की आलोचना हो रही है तो वहीं यूएस ने हर बार इस फैसले का बचाव किया है और कहा है कि वह अब और युद्ध नहीं लड़ सकता। अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने हजारों सैनिक तो गवाएं ही हैं लेकिन इसके अलावा उसने औसतन हर दिन यहां 29 करोड़ डॉलर यानी 2135 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं। दरअसल, ब्राउन यूनिवर्सिटी ने एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में अमेरिका सेना 7 हजार 300 दिनों तक रही और यहां युद्ध से लेकर देश के विकास से जुड़ी परियोजनाओं में अमेरिका ने 20 सालों में कुल 20 खरब डॉलर यानी 1472 खरब रुपये खर्च कर दिए। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे अमेरिकी पैसों की मदद से गरीब युवा भी बेहद अमीर अफगान बन गए। इनमें से अधिकतर युवाओं ने तो अमेरिकी सेना के लिए दुभाषिए के तौर पर काम करना शुरू किया और वे लखपति-करोड़पति बन गए। एक रिपोर्ट में कहा कि अमेरिका ने ये सारी कोशिशें अफगानिस्तान के पुनर्निमाण के लिए की थीं लेकिन इसके बावजूद तालिबान को हर प्रांत की राजधानी पर कब्जा करने, सेना को पस्त करने और अमेरिका को बाहर करने में महज 9 दिन लगे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अफगानिस्तान में व्यापक स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार की वजह से ही यहां लोकतंत्र बच नहीं सका।
अफगानिस्तान में अमेरिका के दो बार के राजदूत रह चुके रेयान क्रॉकर ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘अमेरिका की असफलता की वजह यह भ्रष्टाचार ही है।’ क्रॉकर का मानना है कि अफगानिस्तान में व्यापक स्तर पर हुए भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी अमेरिका की है क्योंकि उसने वहां लाखों-करोड़ों डॉलर की बाढ़ कर दी, जिसको अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पचा नहीं सकी। पेंटागन के अध्ययन के मुताबिक, अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की तरफ से अफगानिस्तान में कॉन्ट्रैक्टर्स को साल 2010 से 2012 के बीच 108 अरब डॉलर की राशि का भुगतान किया गया था। हालांकि, इसमें से 40 फीसदी पैसे अंततः या तो तालिबान के हाथों लग गए या फिर हक्कानी नेटवर्क, ड्रग तस्करों और भ्रष्ट अफगानी अधिकारियों के।