भोपाल । राजधानी में भी रोज 15 से अधिक डेंगू के मरीज मिल रहे हैं। इस सीजन में 175 मरीज मिल चुके हैं। इनमें से 20 शहर के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती है। लार्वा सर्वे और नियंत्रण के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। राजधानी की जनसंख्या तो हर साल बढ रही है लेकिन पद और कर्मचरियों की संख्या जस की तस बनी हुई। इससे कर्मचारियों पर काम लोड बढता जा रहा है। साल 1977 में जब भोपाल शहर में 25 वार्ड थे और आबादी चार लाख थी तब मौसमी बीमारियों के नियंत्रण, सर्वे और जांच के लिए कर्मचारियों के 145 स्वीकृत किए थे। अब शहर में वार्डों की संख्या 85 और आबादी 28 लाख से अधिक हो गई है। ऐसे में पद और कर्मचारी दोनों बढ़ाने थे लेकिन उलटा हो रहा है। पद तो उतने ही है लेकिन इन पर काम करने वाले 145 में से 83 कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए हैं। 62 ही काम कर रहे हैं। यह स्थिति तब है जब पड़ोसी राज्यों में डेंगू समेत मौसमी बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। जिस घर में डेंगू के मरीज मिलते हैं उसके घर के आसपास 400 मीटर तक चारों दिशाओं में छिड़काव करना जरूरी है जो कि नहीं हो रहा है। मुश्किल से 15 से 20 घरों में भी सर्वे नहीं हो रहा है। शहर के एक निजी अस्पताल में इलाज करवा रहे दिनेश शर्मा (परिवर्तित नाम) ने बताया कि उसके घर के आसपास ऐसा ही हुआ है। शहर के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती राहुल सिंह (परिवर्तित नाम) डेंगू संदिग्ध है। चार दिन पहले उसकी प्लेटलेट 17 हजार आई थी। वह नेहरू नगर में रहता है। शुक्रवार शाम तक टीम उसके घर के आसपास छिड़काव करने नहीं पहुंची थी। संदिग्ध मरीजों की तो खोजखबर ही नहीं ली जा रही है। वर्तमान में जीवशास्त्री के स्वीकृत पद एक लेकिन वह खाली है। मलेरिया निरीक्षक के 14पद है जिस में से 4 कार्यरत, कीट संग्राहक के 4पद स्वीकृत है लेकिन वह भी खाली है। फील्ड वर्कर के पद 101है और कार्यरत मात्र 48 पद, सुपरवाइजर के पद 24 है और कार्यरत मात्र 10, सहायक मलेरिया अधिकारी का 1पद है वह भी खाली है। इस बारे में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी का कहना है कि मौसमी बीमारियों समेत डेंगू के नियंत्रण के लिए कार्यरत अमले व व्यवस्थाओं की समीक्षा करेंगे। राजधानी को बीमारी मुक्त रखने के लिए जो भी कदम उठाए जाने होंगे वे उठाए जाएंगे।