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ई-टेंडर महाघोटाले की जांच पर ब्रेक

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भोपाल। मध्य प्रदेश में सबसे बड़े महाघोटाले पर पर्दा डाल दिया गया। व्यापमं से भी बड़ा ई टेंडर घोटाला है लेकिन राजनेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ के कारण पिछले तीन साल में सिर्फ 9 टेंडर्स में ही एफआईआर दर्ज हो सकी। जबकि जांच के दौरान 803 टेंडर्स में टेंपरिंग के सबूत मिले थे। इतना ही नहीं 2014 से 2017 के बीच हजारों टेंडर्स में गड़बड़ी के संकेत भी मिले थे। इसके बावजूद इस अरबों-खरबों के घोटाले में आगे एक भी एफआईआर नहीं करायी गयी।
मध्य प्रदेश का बहुचर्चित ई-टेंडर अब तक का सबसे बड़ा घोटाला साबित हुआ है। ईओडब्ल्यू ने शिवराज सरकार में हुए करीब 3000 करोड़ के ई-टेंडर घोटाले को लेकर सबसे पहली एफआईआर 10 अप्रैल 2019 को दर्ज करायी गयी थी। ये एफआईआर 9 टेंडर में टेंपरिंग को लेकर की गई थी। सभी 9 टेंडर्स जनवरी से मार्च 2018 के दौरान प्रोसेस हुए थे। इसके बाद 52 टेंडर जो अक्टूबर 2017 से मार्च 2018 के दौरान प्रोसेस हुए थे, उनमें से 42 टेंडरों में टेंपरिंग का खुलासा हुआ था। लेकिन जिन 42 टेंडरों की तकनीकी जांच भारत सरकार की इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम को करना थी वो आयी ही नहीं इसलिए आज तक इस केस में एफआईआर नहीं हो सकी। यह घोटाला पहले करीब 3000 करोड़ तक सीमित था, लेकिन आगे की जांच में यह घोटाला अरबों-खरबों तक पहुंचने का आंकलन किया गया था।
हजारों टेंडर्स में हुई थी टेंपरिंग
बीजेपी सरकार में 2014 से 2017 के बीच साढ़े तीन लाख टेंडर्स जारी किये गये थे। ईओडब्ल्यू ने 2014 से 2017 के बीच शिवराज सरकार के दौरान जारी हुए टेंडर्स की कमलनाथ सरकार के दौरान जांच की तो 803 टेंडर्स में टेंपरिंग के सबूत मिले थे। आगे की जांच में ये संख्या हजारों में पहुंचने की संभावना जताई थी। जिन 9 टेंडर्स में एफआईआर दर्ज की गई थी उसमें ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन कंपनी के जरिए टेंपरिंग हुई थी। ईओडब्ल्यू को आगे की जांच के दौरान इसी कंपनी पर बाकी के पुराने टेंडर्स में गड़बड़ी करने के सबूत मिले थे।
नौकरशाह और राजनेताओं का गठजोड़
जिन टेंडर्स में तीन साल में अभी तक कार्रवाई नहीं हुई, उनमें जल संसाधन, सड़क विकास निगम, नर्मदा घाटी विकास, नगरीय प्रशासन, नगर निगम स्मार्ट सिटी, मेट्रो रेल, जल निगम, एनेक्सी भवन समेत कई निर्माण काम करने वाले विभागों के टेंडर्स शामिल हैं। इसमें कई दलाल, संबंधित विभागों के अधिकारी-कर्मचारी और राजनेता भी शामिल हैं। ईओडब्ल्यू ने अपनी पहली एफआईआर अज्ञात नौकरशाहों और राजनेताओं के खिलाफ धारा 120क्च, 420, 468, 471, आईटी एक्ट 2000 की धारा 66, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018 की धारा 7 सहपठित धारा 13(2) के तहत दर्ज की थी।

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