भोपाल । मध्य प्रदेश में जून माह के औसत वर्षा के कोटे से अब तक 46 फीसद अधिक बारिश हो चुकी है। मानसून विशेषकर पूर्वी मध्य प्रदेश पर अधिक मेहरबान रहा। मंगलवार तक प्रदेश में अधिकांश जिलों में सामान्य या सामान्य से अधिक बरसात हो चुकी है, लेकिन सात जिलों में बारिश की दरकार है। मौसम विज्ञान केंद्र के मौसम विज्ञानी जीडी मिश्रा ने बताया कि वर्तमान में किसी वेदर (मौसमी) सिस्टम के प्रभावी नहीं रहने से अपेक्षित बरसात नहीं हो रही है। वातावरण में नमी कम होने से आसमान साफ होने लगा है। इससे धूप निकल रही है और अधिकतम तापमान बढ़ने लगा है। बंगाल की खाड़ी में सिस्टम बनने के कारण तीन-चार जुलाई के आसपास मानसून में कुछ सक्रियता बढ़ने की संभावना है। हालांकि इससे पूर्वी मप्र के जिलों में ही अधिक बारिश होगी। दक्षिण-पश्चिम मानसून ने इस वर्ष तय तारीख (16 जून) से छह दिन पहले दस्तक दे दी थी, लेकिन पूरे जून माह में लगातार बारिश नहीं हुई।
मौसम विज्ञान केंद्र के पूर्व वरिष्ठ मौसम विज्ञानी अजय शुक्ला ने बताया कि मानसून के प्रवेश करने के बाद बंगाल की खाड़ी में दो वेदर सिस्टम बने, लेकिन उनका प्रभाव सिर्फ पूर्वी मप्र तक सीमित रहा। अरब सागर में भी सिस्टम तो बने, लेकिन उनका अधिक प्रभाव महाराष्ट्र, गुजरात तक सीमित रहा। हालांकि इस दौरान नमी मिलते रहने के कारण पूरे प्रदेश में गरज-चमक के साथ रुक-रुक कर बरसात का सिलसिला बना रहा। इस दौरान कहीं-कहीं तेज बौछारें भी पड़ीं। इस तरह की खंड वर्षा के बाद भी अधिकांश जिले तरबतर होते रहे।राजधानी में जून माह की औसत सामान्य बरसात 127.9 मिलीमीटर है। इस वर्ष पिछले 10 साल में तीसरी बार सामान्य से काफी अधिक बरसात हुई है। कृषि विशेषज्ञ और पूर्व कृषि संचालक डॉ.जीएस कौशल ने बताया कि इस बार बरसात अनिश्चित हो रही है। इस वजह से किसानों को सतर्क रहने की जरूरत है। जब तक जमीन चार इंच तक गीली न हो जाए, तब तक बोवनी नहीं करें। सोयाबीन के बजाय मूंग, उड़द, मक्का, ज्वार, तिल्ली आदि की फसल लगाएं। रासायनिक के बजाय जैविक पद्धति से बनी खाद का इस्तेमाल करें। इसके अलावा खेत में सीजन की सब्जियां जरूरत लगाएं, ताकि आत्मनिर्भर बने रहें।