सुश्री ठाकुर ने कहा कि आजादी के 75वें वर्ष, ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत हम सभी को ऐसी महान नायक-नायिकाओं से प्रेरणा लेना चाहिए और प्रभु से प्रार्थना करना चाहिए कि हमें भी रानी दुर्गावती जैसी त्याग-बुद्धि, साहस और देश-भक्ति प्रदान करें।
सुश्री ठाकुर ने बताया कि गोंडवाना की महारानी दुर्गावती कालिंजर की राजा पृथ्वीसिंह की सुपुत्री थी। मातृशक्ति की प्रेरणास्त्रोत रानी दुर्गावती तेज, शौर्य और साहस का प्रतीक थी। उनका विवाह गढ़मंडला के शासक महाराजा संग्राम सिंह के सुपुत्र दलपत शाह के साथ हुआ था। दलपत शाह की मृत्यु के पश्चात रानी दुर्गावती ने राज्य का संचालन किया। राज्य की समृद्धि से प्रभावित होकर अकबर के सेनापति आसफ खान ने गढ़ मंडला को हथियाने के लिए आक्रमण कर दिया। रानी दुर्गावती वीरतापूर्वक लड़ी, उन्होंने हजारों मुगलों को मौत के घाट उठा उतारा और आसिफ खान को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। कालांतर में शीघ्र ही मुगलों का पुनः आक्रमण हुआ। रानी दुर्गावती मुगलों से वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गयी। रानी दुर्गावती नहीं चाहती थी कि जीवित रहते हुए उनका शरीर अंग्रेजों के हाथ लगे। इसलिए उन्होंने अपनी कटार से देह को समाप्त कर लिया।
सुश्री ठाकुर ने आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के देशभक्त और महापुरुषों को याद करते हुए निम्न पक्तियां दोहराई –
यदि देश हित मरना पड़े मुझ को सहस्त्रों बार भी ।
तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाउं कभी ।।
हे ईष भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो ।
कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो ।।