जेनेवा। एक अनुमान के मुताबिक अकेले अमेरिकी आर्मी दुनिया के 140 देशों की आर्मी से ज्यादा प्रदूषण फैला रही है। अमेरिकी आर्मी का कार्बन फुटप्रिंट दूसरी सेनाओं के मुकाबले काफी बड़ा है। ब्राउन यूनिवर्सिटी की कॉस्ट्स ऑफ वॉर रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में अमेरिकी सेना ने फ्यूल जलाने से 25,000 किलोटन कार्बन डाइऑक्साइड निकाली थी। ये एक दिन में लगभग 269,230 बैरल तेल खरीदने का नतीजा था, जो सेना की तीनों शाखाओं में इस्तेमाल हुआ था।
वैसे अमेरिकी सेना के कामों और मशीनरी के कारण होने वाला प्रदूषण अक्सर नजरअंदाज होता रहा है क्योंकि इसके लिए पेंटागन से संपर्क करना होता है, जो कि काफी मुश्किल है। हालांकि फ्रीडम ऑफ इंफॉर्मेशन एक्ट के तहत यूएस डिफेंस लॉजिस्टिक्स एजेंसी से संपर्क करने पर कई जानकारियां मिल सकीं। ये जानकारियां द कन्वर्सेशन में दी गई हैं। अमेरिका में सेना की क्लाइमेट पॉलसी में भी काफी विरोधाभास है। जैसे वहां मिलिट्री बेस में रिन्यूएबल ऊर्जा पर जोर दिया जाता है लेकिन असल में हालात अलग हैं। ये आर्मी वैसे तो बायोफ्यूल के उत्पादन पर जोर दे रही है लेकिन ये फ्यूल वहां सेना के कुल फ्यूल खर्च का काफी छोटा हिस्सा है। यहां बता दें कि अमेरिका के पास दुनिया की सबसे ताकतवर और विशालकाय सेना है। दुनियाभर के देशों की सैन्य क्षमताओं की रैंकिंग करने वाली वेबसाइट ग्लोबल फायर पावर ने अमेरिका को सैन्य क्षमता के मामले में पूरी दुनिया में नंबर वन पर रखा है।
रक्षा मामलों की वेबसाइट मिलिट्री डायरेक्ट ने साल की शुरुआत में बताया था कि सेना पर सबसे ज्यादा व्यय के मामले में अमेरिका 732 अरब डॉलर (लगभग 53 लाख करोड़ रुपये) के साथ टॉप पर है, जबकि चीन और रूस भी इससे पीछे हैं। ऐसे में जाहिर तौर पर लंबी-चौड़ी और अत्याधुनिक सेना का कार्बन उत्सर्जन ज्यादा ही रहेगा।जिस कार्बन फुटप्रिंट को लेकर चिंता जताई जा रही है, चलते हुए एक बार उसे भी समझते चलते हैं। कोई व्यक्ति, संस्था या कोई चीज पर्यावरण के लिए खतरनाक जितनी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन करती है, उसे कार्बन फुटप्रिंट कहते हैं। ग्रीनहाउस गैसों के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के खतरे बढ़ते हैं। तो आपका कार्बन फुटप्रिंट ये बताता है कि पर्यावरण पर आपकी जीवनशैली कैसे और कितना असर डालती है। इसे ऐसे समझें कि अगर आप अपने निजी वाहन से दफ्तर जाते हैं तो आपका कार्बन फुटप्रिंट उस व्यक्ति की तुलना में अधिक होगा, जो सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल करता है। देश के आधार पर कार्बन फुटप्रिंट को देखें तो चीन का फुटप्रिंट सबसे बड़ा है।
वेबसाइट इन्वेस्टोपीडिया का डाटा बताता है कि साल 2018 में चीन से सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ था, जो कि 10.06 बिलियन मैट्रिक टन था। इसके बाद अमेरिका का नंबर था, जिसका कार्बन एमिशन लगभग 5.41 बिलियन मैट्रिक टन रहा। बता दें कि पर्यावरणविद लगातार बढ़ते प्रदूषण पर चेतावनी दे रहे हैं। इस दौरान कार्बन उत्सर्जन कम करने पर जोर दिया जा रहा है। ये दबाव कारखानों से लेकर आम लोगों पर भी है। इस बीच सेना का जिक्र कहीं-कहीं ही आ रहा है, जबकि बढ़ते प्रदूषण में इसका भी बड़ा हिस्सा है।