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नापितों को न मिली सहायता, न ही पुजारियों को मिला संबल योजना का लाभ

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भोपाल । कोरोना कफ्र्यू को जहां कुछ लोग अवसर मानकर चल रहे है, वहीं दूसरी ओर समाज के एक तबके के लिये यह संकट का कारण बन गया है। क्योंकि यह वर्ग जीवन यापन के लिये एक मात्र स्त्रोत सेवा पर निर्भर है और सरकारी प्रतिबंधों के आड़े आने के कारण आय के स्त्रोत नगण्य हो गये है। लिहाजा इनको जीवन यापन के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है।

   खास बात यह है कि पनवाड़ी और कुली का काम करने वाले लोगों को यदि छोड़ दिया जाय तो यह सभी सनातन व्यवस्था के अनुयायी हैं और अभी भी पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इनकी संख्या प्रदेश भर में करीब 50 लाख से अधिक आंकी जा रही है। बावजूद इसके डेढ़ माह के कोरोना कफ्र्यू अवधि में भी सरकार ने इस समुदाय की सुध नहीं ली है। जबकि श्रमिकों, व्यापारियों और उद्योगपतियों के व्यवसाय की चिंता करते हुए नियमों का निर्धारण किया गया है। लिहाजा आय के लिये समाज की सेवा पर निर्भर तबके  का स्त्रोत बाधित हो गया है। इसमें भगवान की सेवा करने वाले पुजारियों और कथा-पूजन करने वाले कर्मकांडियों के साथ ही पारंपरिक व्यवसाय को आय का जरिया बनाने वाले केश शिल्पी, धोबी, लोहार, बढ़ई और कुम्हार सबसे ज्यादा प्रभावित हुये हैं। क्योंकि इनको कफ्र्यू में सबसे ज्यादा यही वर्ग निशाने पर रहा है।

पात्रता पर्ची का भी नहीं मिल रहा लाभ

पुजारियों की माने तो मंदिर बंद हैं और जीविकोपार्जन के सरकार के अधिकारी  सहयोग नहीं कर रहे हैं। लिहाजा सागर, देवास, होशंगाबाद, जबलपुर, कटनी, सोहागपुर, बालाघाट, रायसेन, सिहोर, इंदौर और छिंदवाड़ा में गरीब पुजारियों को राशन के लिये पात्रता पर्ची भी नहीं मिल रही है। भोपाल के पं. कपिल शर्मा ने बताया कि नगर निगम के अधिकारी यह कहते हुए पर्ची देने से इंकार कर रहे हैं कि यह सिर्फ झुग्गी क्षेत्र के लोंगो के लिये है, पंडि़तों के लिये नहीं।

वहीं मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करने वाले हरीश का कहना है कि राशन तो मिलता है, लेकिन भविष्य दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि 50 हजार का वर्तन खरीदा था अब तक 20 हजार का व्यवसाय भी नहीं हुआ है। 

व्यवसाय प्रभावित तो बचत पूजी बनी सहारा

विश्वकर्मा समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि बीते डेढ़ माह से काम बंद होने के कारण अभी बचत पूंजी ही जीविकोपार्जन का सहारा है। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में करीब 1.30 लाख से अधिक परिवार लोहे के व्यवसाय पर निर्भर है। कमोबेश यही हालात बढ़ई के कारोबार से जुड़े लोगों की भी है। पहले से खराब व्यवसायिक स्थिति से जूझ रहे हैं, ऊपर से कफ्र्यू ने इसे चौपट कर दिया। सरकारी रिकार्ड अनुसार इसकी संख्या करीब 30 हजार है। इतना ही नहीं रेडीमेड कपड़ों के बढ़ते चलने के कारण पहले से खराब स्थिति में पहुंचे दर्जी समुदाय की कमर इस क$फ्र्यू के कारण टूट गई है।  दुकान चलाने वाले कहते हैं कि इस कारोबार में लगभग दो लाख लोग है। दो-चार प्रतिशत को छोड़कर सब इस समय मुश्किल में हैं और कफ्र्यू खुलने का इंतजार कर रहे हैं।

इनका कारोबार पूरी तरह चौपट

धोबी, 13669 हजार

पनवाड़ी, 2.50 लाख

पूजा सामग्री विक्रेता, 50 हजार

इनका कहना है

हमारे समाज के करीब 42 लाख लोग है। जिसमें 30 लाख सिर्फ बाल काटने के धंधे में है। डेढ़ महीने से दुकाने बंद है और आय का दूसरा साधन नहीं है। मुख्यमंत्री से प्रति परिवार के लिये 10 हजार की सहायता मांगी है। बावजूद इसके सरकार ने अब तक कोई सुनवाई नहीं की है। समझ नहीं आता कहां जाएं।

विनोद सेन, प्रदेश अध्यक्ष मप्र केश शिल्पी समाज

कोरोना लाकडॉउन-2 ने पुजारियों व कर्मकांडियों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब की है। इनकी चिंता करते हुए मंत्रियों से मदद की गुहार लगाई है, लेकिन अब तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संबल योजना में शामिल करने का कहा है, लेकिन अभी तक आदेश जारी नहीं हुए है।

पं. नरेंद्र दीक्षित, पुजारी महासंघ मप्र

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