भोपाल ।अस्पतालों में भर्ती करीब सत्तर फीसदी कोरोना मरीज एंजायटी डिसऑर्डर से पीडित है। ऐस में आत्मघाती कदम उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं। कई मरीज तो एक-एक महीने तक वेंटिलेटर में रहने के बाद भी ठीक होकर आ रहे हैं। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो मामूली या मध्यम श्रेणी की बीमारी होने पर भी गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर से पीड़ित हो रहे हैं। गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल से संबंध हमीदिया अस्पताल में इसी हफ्ते दो कोरोना मरीजों ने खुदकुशी कर ली। दोनों बुजुर्ग थे और स्वस्थ हो रहे थे। इसी तरह से पालीवाल अस्पताल में भी 10 दिन के भीतर दो मरीजों ने खिड़की से कूदकर जान देने की कोशिश की। ऐसी घटनाएं सामने आने के बाद अब शहर के निजी और सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के मन को मजबूत करने के लिए मनोचिकित्सक और काउंसलर्स की टीम एक-एक मरीज से बात कर उनका मानसिक स्वास्थ्य जानने की कोशिश कर रही है। काउंसलिंग के दौरान सामने आया है कि अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों में करीब 70 फीसद एंजायटी डिसऑर्डर से पीड़ित हैं इनमें से 20 फीसद यानी कुल मरीजों में से14 फीसद को गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर है। हमीदिया अस्पताल के मानसिक रोग विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ रुचि सोनी का कहना है कि हमीदिया अस्पताल में कोरोना के करीब 700 मरीज भर्ती हैं। इनमें 70 फीसद के करीब एंजायटी डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। 20 फीसद को डिप्रेशन है। मानसिक बीमारियां बढ़ने के बाद से काउंसलिंग बढ़ा दी गई है। गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर से ज्यादातर वह मरीज पीड़ित हैं जिनके घर में इस बीमारी से किसी की मौत हुई है। ऐसे मरीजों की पहचान कर ज्यादा देर तक काउंसलिंग कर रहे हैं। सरकार से और काउंसलर्स मांगे गए हैं।यह देखने में आ रहा है कि किसी मरीज का ऑक्सीजन का स्तर जैसे ही 80 फीसद से नीचे पहुंचता है वह डिप्रेशन में आने लगता है। कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में 20 से 30 फीसद में पोस्ट ट्रौमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर भी देखने को मिल रहा है। यानी मरीज सदमे से उबर नहीं पा रहा है। उसको फिर से बीमारी होने का डर सता रहा है। वहीं एक अन्य मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर के 15 से 20 फीसद मरीज हैं, हालांकि एंजायटी डिसऑर्डर कुल मरीजों में 70 फीसद में मिल रहा है। 20 से 30 फीसद में डिप्रेशन भी मिल रहा है। बड़ी बात यह है गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर उन मरीजों में मिल रहा है जो मामूली या मध्यम श्रेणी वाले हैं। इसकी वजह यह है कि इन्हें सोचने का ज्यादा मौका मिलता है। दूसरी बात यह कि इन्हें इस बात की चिंता सताती है की हालत बिगड़ी तो ऑक्सीजन या वेंटीलेटर नहीं मिल पाएगा, इंजेक्शन नहीं मिल पाएंगे और इलाज पर खर्च भी बहुत ज्यादा आएगा। एंजायटी डिसऑर्डर में मरीज आवेश के अधीन हो जाते हैं और वह खतरनाक कदम उठा लेते हैं। मरीज के एंजायटी डिसऑर्डर या अवसाद में जाने की वजह से उनका ऑक्सीजन का स्तर भी कम होने लगता है।