बिलासपुर । व्र्चुअल बैठक में सीएम को सब ओके बताया जा रहा, रोज बैठके हो रही व्यवस्था में सुधार के दावे किये जा रहे पर हालात नही सुधर रहे, मरीज इलाज के अभाव में अस्पताल की दहलीज पर दम तोड़ रहे। कुछ हॉस्पिटल संचालक और संगठन कोविड सेंटर खोलने अनुमति मांग रहे परन्तु उन्हें नियम कायदे का हवाला देकर लटकाया जा रहा। खुद व्यवस्था कर नही पा रहे और जो सहयोग के लिये आगे आ रहे उन्हें अनुमति नही दी जा रही। अजब स्थिति है।
बिलासपुर में कोरोना संक्रमितों की संख्या और मृतको की तादात कम -ज्यादा हो रही। संक्रमितों का आंकड़ा 1000 और मृतको का आंकड़ा दिन ब दिन 70 तक पार करता गया।
कोरोनाकाल में कमी अव्यवस्था के चलते आमजन और खबरों को जनजन तक पहुचाने वाले पत्रकार व उनके परिजनों की मौते हो रही।
अस्पतालों में डॉक्टर और स्टाफ जी जान लगाकर कठिन परिस्थितियों मे मरीजो का उपचार और तीमारदारी कर रहे। पर बेड व संसाधन की कमी है। निजी अस्पतालों के हालात किसी से छिपे नही है।
इन सबके बीच कुछ पत्रकारों ने अपने साथियों उनके परिवारजनों, और जरुरत पडऩे पर अन्य लोगो को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने एक चिकित्सक को राजी किया, ऑक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था बनाई परन्तु जिला प्रशासन ने नियम कायदे का हवाला दे नियत सेंटर को अनुमति प्रदान करने हाथ खड़ा कर दिया। पत्रकार साथियो ने नगर विधायक के समक्ष भी अपनी बात रख पहल की पर बात नही बनी।
सवाल जान का है
जब एक मंत्री के कार्यक्रम के लिए धारा 144 को 3 घण्टे टाला जा सकता है, जीवनदायनी अरपा को बदहाल करने वाले रेत चोरों पर रियायत दे दी गयी, कोरोनाकाल में प्रताप टाकीज के पास एक संस्थान को आधी रात तक कारोबार की छूट दे दी गयी, तब नियम कायदे की परवाह नही की गई।
सवाल लोगो की जान का है। प्रशासन को अच्छी पहल करनी चाहिए और समाजिक व अन्य संस्थाओं की पहल का सम्मान करनी चाहिए इससे कम से कम ऐसे मरीजो को इन सेंटरो मेंउपचार मिल सकेगा जो अस्पताल की दहलीज पर दम तोड़ दे रहे।
दिल्ली में सड़क पर दिया जा रहा ऑक्सीजन
सवाल यह उठता है जब सवाल लोगो की जान बचाने का है, तो फिर अनुमति में टाल मटोल क्यो। देश भर ने टीवी स्क्रीन पर देखा कि कैसे जनसेवा में जुटे लोग कैसे दिल्ली और गाजियाबाद के अस्पताल में बेड न मिलने पर कैसे पीडि़त मरीजो को सड़क पर आक्सीजन देकर उनकी जान बचाने में अहम भूमिका निभाई।