लैलूँगा-जोहार छत्तीसगढ़। ग्रामीण पत्रकार आशुतोष मिश्रा पर एफआईआर दर्ज कराना अधिकारियों के अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने जैसा है।जिसमें सीधे तौर पर अधिकारियों ने लॉकडाउन की इन विकट परिस्थितियों में संक्रमण फैलने के अंदेशे को लेकर जनहित में प्रकाशित समाचार की गंभीरता और उसकी पड़ताल करने की बजाए उल्टे पूरे मामले को दबाने के लिए इस पूरी साजिश को अंजाम दिया है। महामारी और लॉक डाउन के इस भीषण समय में जब लोग अपने जीवन की सुरक्षा के लिए अपना काम काज छोड़कर अपने घरों में कैद हुए पड़े है।ऐसे समय में भीड़भाड़ लगाकर महुवा का व्यापार किया जाना कहा तक उचित है।क्या ये सीधे तौर पर आवाम की जान से खिलवाड़ नही है।पत्रकार आशुतोष मिश्रा ने एफआईआर के रूप में लॉक डाउन और संक्रमण के खतरों के बीच जाकर लैलूँगा विकासखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे इस गोरखधंधे को उजागर करने की कीमत चुकाई है।ये पूरा मामला प्रेस की आवाज को दबाने का कुत्संगित प्रयास है।जिसमें कि इसे अंजाम दे रहे महुवा व्यापारियों का पूरा गिरोह शामिल है।और आपदा को अवसर में बदलने के फिराक में लगे इन्ही व्यापारियों के इशारों पर पत्रकार के खिलाफ रची गई इस सुनियोजित साजिश को अंजाम दिया गया है।आज ऐसे चंद अधिकारियों की वजह से प्रेस और प्रशासन के बीच टकराव की स्तिथि बनी हुई है।और इस मसले को लेकर दोनों आमने सामने आ खड़े हुए है।जबकि कोरोना काल के इस विकट समय मे दोनों के बीच आपसी सामंजस्य की नितांत आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले को लेकर लैलूँगा प्रेस क्लब रायगढ़ के पदाधिकारी जिला कलेक्टर से मिल पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करेंगे।