लैलूंगा-जोहार छत्तीसगढ़। आदिवासी समुदाय से बाहुल्य विकासखण्ड क्षेत्र लैलूंगा के ग्रामीण इलाकों में आदिवासियों की धाक है। और जहा इस समुदाय का एक तबका महुआ शराब का उपयोग अपने आराध्य देवी देवताओं से लेकर मेहमाननवाजी और शाम को आदत के रूप में उपयोग में लाया जाता है। वही इस गांव में शराब के नाम पर लोगो के हाथ पांव फूलने लगते है। लैलूंगा से सटे ग्राम पंचायत बांसडांड में आदिवासी समुदाय की महिलाओं का भी एक ऐसा गठन है जहाँ पुरुष शराब के नाम पर कोसों दूर भागते है या फिर इसकी तलब से कोसो दूर है।लगभग 1 दशक से भी पहले बांस डांड की महिलाओं ने एकजुट होकर गांव में शराब पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया औऱ कड़े जुर्माने का प्रवाधान सहित कई कायदो का निर्माण किया जो आज तक इस गांव के पंचायत में लागू है। गांव में महिलाओं की जागरूकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पंचायत में महिला जनप्रतिनिधियों के नेतृत्व में गांव का विकास भले ही पीछे छूट गया हो लेकिन घरों में शान्ति और शराबियो का शोर शराबा कतई नही देखा जाता। साथ ही इस गांव में शराबियो का कदम रखना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर माना जाता है।
दूर-दूर तक हो रही तारीफ
गांव की महिला सरपंच सुलोचना भगत और महिला पंचों की एकजुटता का असर जहा गांव में शराब प्रतिबंध और महिलाओं पर अत्याचार लगभग अन्य क्षेत्रों के मुकाबले बेहद कम माने जा रहे है। जिससे इस गांव की तारीफ आसपास के क्षेत्र में मिसाल के तौर पर की जाती है।वही महिला पंचो में प्रमुख रूप से जानकी अंचल, सरोज भगत और भगवती सिदार की भूमिका अहम मानी जाती है।और गांव की इन बेटी बहुओं की क्षेत्र में खूब प्रशंसा की जा रही है।
रीना भगत ने बांटा 10 वाला मास्क
यहां बताना लाजिमी होगा कि इसी गांव में एक महिला बीडीसी रीना भगत का नाम भी किसी परिचय को मोहताज नहीं है।जो पंचायत में पीडीएस का दुकान चलाती है। लेकिन बाकी महिलाओं से अलग ही इनकी चर्चायें रहती है। इस बार गांव में मास्क वितरण को लेकर इन्हें जमकर कोसा जा रहा है।हालांकि एक परिवार में एक मास्क देकर इन्होंने अपना नाम कर लिया किन्तु कोविड 19 की इस चुनोती से लड़ने एक परिवार में एक मास्क काफी है ऐसे ही कई सवाल बीडीसी रीना भगत की मुश्किलें बढ़ा रही है।